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के साथ हस्तिनापुर जाते हैं । वह भीष्म, द्रोण, मिदुर आदि के साथ धृतराष्ट्र को समझाकर इस बात के लिए राजी करते हैं कि पाण्डवों को उनका न्यायसम्मल आधा राज्य दिया जाए। उन्हें 'खाण्डवप्रस्थ' मिलता है। उनके आदेश पर इन्द्र खाण्डवप्राय में इन्द्रपुरी के समान 'इन्द्रप्रस्थ नगरी की रचना करता है। वे धूमधाम से नगर में प्रवेश करते हैं। तीसरी बार, वह सब सामने आते हैं जब बारह वर्ष के वनवास काल में तीपों का पर्यटन करते हुए पाण्डन प्रभास तीचं पहुंचते हैं। वे चिरसखा अर्जुन से मिलने आते हैं। अर्जुन के साथ वे द्वारिका नगरी जाते हैं। चौथी बार वह सायवन दाह के प्रसंग में दिखाई देते हैं । पाँचवीं बार, युधिष्ठिर द्वारा आयोजित राजसूय यज्ञ के समय आते हैं । वह बड़ी कुशलता से जरासंध का वध करवाते हैं। इसके बाद राजसूय यश शुरू होता है। उसमें ब्राह्मणों के पैर पसारने का काम श्रीकृष्ण स्वयं अपने कपर लेते हैं। श्रीकृष्ण की प्रशंसा शिशुपाल को सहन नहीं होती । वह भड़क उठता है। वह युद्ध के लिए उन्हें ललकारता है। सो अपराध क्षमा करने के बाद, श्रीकृष्ण सुदर्शन चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर देते हैं। छठी बार, वह द्रोपदी के नीरहरण प्रसंग पर उपस्थित होते हैं और वस्त्रावतार धारण कर अपनी भगवत्ता प्रकट करते हैं। सातवी बार वह पाण्डवों के वनवास प्रसग पर, उनसे वन में मिलने जाते हैं और आवेश में कहते हैं- लगता है कि यह धरती दुयोधन, कर्ण, दानि और दुःशासन के रक्त का पान करेगी। वह कृष्णा (द्रौपदी) से कहते है--शिशुपाल के भाई शाल्ब ने द्वारिका पर आक्रमण कर दिया था। उसे परास्त करने में समय लग गया अतः मैं नहीं आ सका ! यदि आ सकता टोष्ठिर को जुआ खेलने से रोक देता ।' पाण्डेयजी युधिष्ठिर से कहते हैं कि, मुझे पुरातन प्रलय के समय जिन देवता भगवान् (बालमुकुन्द)का दर्शन हुआ था वही थे कृष्ण हैं । आठवीं बार वह दुबईमा के कोप से द्रौपदी की रक्षा करते हैं। दुर्वासा युधिष्ठिर के अतिथि बनकर आते हैं । युधिष्ठिर उनसे भोजन का आग्रह करते है । परन्तु द्रौपदी भाजन कर चुकी होती है। वह संकट में पड़ जाती है। उस समय श्रीकृष्ण उसकी सहायता करते हैं। नौवीं बार वह विराट की सभा में अभिमन्यु-उत्तरा के विवाह में सम्मिलित होते हैं। वहां यह प्रश्न उठाया है कि पाण्डवों का राज्य किस प्रकार वापस दिलाया जाए । युद्ध में सहायता करने के लिए अर्जुन और दुर्योधन श्रीकृष्ण के पास द्वारिका पहुंचते हैं। उनमें से एक (अर्जुन) पैरों को पास बैठता है और दूसरा सिहराने । अर्जुन दस करोड़ सेना के विकल्प में श्रीकृष्ण को अपने पक्ष में रखना पसन्द करता है, भले ही वह युद्ध में न लडें । दुर्योधन इस बात से प्रसन्न है कि कृष्ण की दस करोड़ सेना उसकी ओर से लड़ेगी।