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महाभारत : वंश-परम्परा
महाभारत के अनुसार' सूर्यवंषा और चन्द्रवंश की परम्परा इस प्रकार है---
१. नारायण
२. ब्रह्मा
सुर्यवंश
चन्द्रवंश
३. मरीचि
३. अधि ४. कश्यप
४. चन्द्र ५. विवस्वान् (सूर्य)
५. बध ६. ववस्वत् मनु
६. पुरुरवा ७. इला (सुद्युम्न)
७. आयुग चन्द्रवंश की आगे की वंशावलि इस प्रकार है
८. नहुष, ६. यमाति, १०. पुरु, ११. जनमेजय, १२. प्राचिन्वान, १३, संपाति, १४. अहंयाति, १५. सार्वभौम, १६. जयसेन, १७. अवाचीन, १८. अरिह, १६. महाभौम, २०. अयुतनायी, २१. अक्रोधन, २२. देवातिथि, २३, अरिह, २४. ऋक्ष, २५. मतिर, २६. तंसु, २७. इलिन, २८, दुष्यन्त, २६. भरत, ३०, सुमन्य, ३१ सुद्रौत्र, ३२. हस्ती, ३३. विकुण्ठन, ३४. अजमीढ, ३५. संवरण, ३६. कुरु, ३७. विदुर, ३६. अनश्वा, परीक्षित, ४०, भीमसेन, ४१. प्रतिथवा, ४२. प्रतीप, ४३. शंतनु, ४८, विचित्रवीर्य, ४५, धृतराष्ट्र. ४६. धृतराष्ट्र के पुत्र ।
इस प्रकार पाण्डव आदिनारायण की ४६वीं पीढ़ी में आते हैं।
चन्द्रवंश और पाण्डववंश
स्व. डॉ. चिन्तामणि राघ वद्य के अनुसार मनु की पुत्री इला और चन्द्र से चन्द्रवंश की उत्पत्ति हुई। पहला राजा पुरुरवा हुआ । पुरुरवा और उर्वशी की प्रेमकथा ऋग्वेद में भी है। दूसरे राजा ययाति हैं।
ययाति नहुष के दूसरे पुत्र थे। इनके बड़े भाई यतियोग का आश्रय लेकर ब्रह्मीभूत हो गए थे। ययाति की दो पत्नियां थीं—देवयानी और शर्मिष्ठा। दोनों से पांच पुत्र हुए : ययातिदेवयानी से यदु और तुर्वसु तथा ययाति-शर्मिष्ठा से गुह्य , अनु और पुरु।।
देवयानी शुक्राचार्य की कन्या श्री, अतः ययाति मुनिकोप के डर से उससे विवाह नहीं करते। लेकिन बाद में स्वीकृति मिल जाने पर वह विवाह कर लेते हैं। शर्मिष्ठा के पुत्रों का पता चलने पर देवयानी अपने पिता के पास जाली है और उन्हें सारी बात बताती है । शुक्रा१. यल्याण, वर्ष ३, संख्या ११, सितम्बर १९५८ २. कल्याण, वर्ष ३, संख्या, १०, अगस्त १९५८