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नाम से विद्याधर और विद्याधरी उत्पन्न हुए। वीरक सेट का जीव मरकर देव होता है और उन दोनों (विद्याधर- दषस्ती) को चम्पानगर में फेंक देता है। वे वहीं रहने लगते हैं, जहाँ वे 'हरि' नामक बालक को जन्म देते हैं। यहीं से हरिवंश इस प्रकार शुरू हुआ-
आर्यक मनोरमा
हरि
कई पीढ़ियों के बाद राजा सुमित्र - पद्मावती
सर्वे तीर्थंकर मुनिसुव्रत
शर
सुप्र
दक्ष- इला
दक्ष अपनी ही कन्या मनोहारी को पत्नी बना लेता है । इला रूठकर, अपने पुत्र ऐलेय के साथ दुर्गम वन में चली जाती है और इलावर्धन नगर बसाती है। राजा होने पर ऐलेय ताम्रलिप्ति और नर्मदा के तट पर माहिष्मती नगर की स्थापना करता है। यहां से हरिवंश की दूसरी स्वतन्त्र शाखा फूटती है, जिसमें अरिष्टनेमि और मत्स्य नामक राजा प्रमुख थे ।
राजा मत्स्य हस्तिनागपुर और भद्रपुर नगरों को जीत लेता है। उसके सौ पुत्रों में आयोधन सबसे प्रतापी था । आयोधन के आगे के वंश की परम्परा इस प्रकार मिलती है
बायोषन
सूर्य (तीसरी पीढ़ी)
अभिचन्द्र (सातवीं पीढ़ी )
T
वसु (नारद और पर्वतक का सहपाठी )
दस पुत्र ( वसु के पतन के बाद एक के बाद एक आठ पुत्रों की मृत्यु, नौवाँ पुत्र सुवसु नागपुर चला गया तथा दसव बृहद्रथ मथुरा में जा बसा । )
बृहद्रथ की परम्परा में यदु राजा हुआ ।
नरपति
वीर