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________________ (११) स्नान करते हुए के पैर केली दोनों के एक साथ पुत्र होते हैं । चूंकि रुक्मिणी के पुत्र की सूचना पहले मिलती है अत: उसका पुत्र प्रद्यम्न बड़ा मान लिया जाता है और सत्यभामा का छोटा । दैवयोग से प्रद्युम्न को उसके पूर्व भव का बेरी धूमकेतु उठा ले जाता है और खदिरबन में शिला के नीचे दबाकर पला जाता है । विद्याधर. दम्पती मंवर-कांचनमाला उसे पाल-पोसते हैं। बालक कई लीलाओं का केन्द्रबिन्दु और अनेक सिद्धियों का धारक बनता है । कंचनमाला उसके रूप पर मुग्ध हो जाती है। इच्छा पूरी न होने पर लांछन लगाती है । अन्त में वह बालक कालसंवर और उसके सैकड़ों पत्रों को पराजित करता है। द्वारिका में रुक्मिणी पुत्र-वियोग में दुःखी है। श्रीकृष्ण उसे ढाढस बंधाते हैं । नारद बालक की खोज में निकलते हैं । वह बालक के साथ विमान से जब लौटते हैं तो उन्हें भानुकुमार की बरात द्वारिका जाती हुई दिखाई देती है । प्रद्युम्न आकाश में विमान खड़ाकर, नीचे उतरकर, अपनी लीलाओं का प्रदर्शन करता है। पाण्डवों के स्कंधावार को अवरुद्ध कर लेता है। वहीं से वह द्वारावती जाता है। सत्यभामा को तरह-तरह से तंग करता है, उसका उद्यान उजाड़ देता है। तभी रुक्मिणी सुन्दर निमित्त देखती है। प्रद्युम्न मां से मेंट करता है । इसी समय नाई आता है सत्यभामा का सन्देश लेकर । प्रद्युम्न अपमानित कर भगा देता है। कृष्ण और प्रघुम्न की परस्पर भेंट होती है। दुर्योधन की पुत्री से प्रद्युम्न का विवाह होता है । सत्यभामा यह सबूत चाहती है कि यह युवा उसी का पुत्र है । नारद विस्तार से सारी घटना का उल्लेख करते हैं। यह मालूम होने पर कि मनु का दूसरा भाई कैटभ भी स्वर्ग से अवतरित होकर कृष्ण का पुत्र होगा, सत्यभामा चाहती है कि रजस्वला होने के चौथे दिन कृष्ण उससे समागम करें जिससे वह यशस्वी पुत्र की माता बन सके। परन्तु प्रद्युम्न विद्या की सहायता से जम्बुवती को उसके रूप में भेज देता है, उससे शम्बुकुमार का जन्म होता है । रुक्मिणी विदर्भराज से दूसरी कन्या माधवी अपने पुत्र के लिए मांगती है। विदर्मराज दूत को डांटकर भगा देता है । प्रद्युम्न और शम्यूकुमार कुण्डनपुर जाते हैं । कन्या के बाप के यह काहने पर कि चण्डालकुल में कन्या दे देना अच्छा परन्तु जिसने अपनी मां और भाई का अपमान किया है उसको कन्या देना अच्छा नहीं--दोनों उत्पात मचा देते हैं । कन्या स्वयं विद्रोह कर बैठती है और अपनी सखी से कहती है कि मैंने स्वयंवर माला से इनका वरण कर लिया, कहां का बाप और कहा की मां ? मेरी इमछा इन पर है, जो कुछ हुआ सो हो गया अब फुल से क्या ? वे दोनों कन्या को वधू बनाकर ले आते हैं। वंशों का विकास जैन पौराणिक परम्परा जन पौराणिक मान्यता के अनुसार, मूल वंश दो है-ध्याकुवंश और विद्यापरवंश । इनमें इक्ष्वाकुवंश मानव वंश है । मानववंदा और विद्याधर वंश के मेल से राक्षस-वंया कीउत्पत्ति हुई। आगे चलकर इक्ष्वाकुवंश के दो भेद हुए-सूर्यबंश और चन्द्रवंश । चन्द्रवंश का विकास बाहुबलि के पुत्र सोमयश से हुआ । जहाँ तक यादववंश के विकास का सम्बन्ध है वह हरिवंश का ही एक परवर्ती विकास है। तीर्थकर शीतलनाथ के समय, वासुदेश का राजा सुमुख कौशाम्बी नगरी में रहता था। उसने अपने ही नगर के सेठ वीरक की परली वनमाला का अपहरण कर लिया था, दोनों जैनधर्म में निम्या के कारण आगामी जन्म में विजया पर श्रार्यक और मनोरमा
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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