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________________ कर लेती है। कृष्ण का जन्म होता है। वसुदेव उसे उड़ाते हैं और तभी बलराम छत्र धारण करते हैं । वे उसे नन्द-यशोदा को सौंपकर उनकी कन्या लेकर आ जाते हैं। बालक धीरे-धीरे बढ़ने लगता है। इसकी गोकुल में अच्छी प्रतिक्रिया होती है और मथा में बरी। कंस के मन में आशंका हो उठती है। कंस के पास पूर्व जन्म में सिद्ध हुई देवियां आती हैं । वह उन्हें आज्ञा देता है कि नन्द के घर जाकर शिशु कुष्ण को मार डालें। आदेश के अनुसार, देवियाँ वहाँ पहेमली हैं लेकिन पराजिल होकर लौट आती हैं।। एक दिन देवकी और बलराम कृष्ण को देखने के लिए गोकूल जाते हैं। देवकी बालक को देखकर प्रसन्न हो उठती है । वह गोपियों की उन बातों को सुनती है, जो वे शिशु कृष्ण से कहती हैं । दुग्धकलश से अभिषेक कर वे दोनों सौट जाते हैं। कंस कृष्ण को मारने के लिए तरह-तरह के षड्यन्त्र रचता है परन्तु हर बार वह असफल रहता है । कंस के बुलावे पर बलराम और कृष्ण मथुरा पहुँचते हैं। वहीं युद्ध में श्रीकृष्ण केस को पछाड़ देते हैं । उग्रसेन की धरती उन्हें हो सौप दी जाती है । बलराम का रेवती, और श्रीकृष्ण का सत्यभामा से विवाह सम्पन्न होता है। नन्द और वशोदा को भी वहाँ बलवा लिया जाता है। वे जाकर शौर्यपुर में रहने लगते हैं। अपने पति कंस की मृत्यु से दुःखी जीवंजसा जरासंध के पास जाकर सारा वृतान्त सुनाती है। जरासंध सचला लेने के लिए अपने भाई को वहां भेजता है। कृष्ण और उसको सेना का आमना-साना होता है। अन्त में पराजित होकर वह लौट जाता है। जरासंघ क्रुद्ध होकर इस बार अपने भाई के निर्देशन में सम्पूर्ण सेना भेज देता है। इस प्रकार तीन सौ छयालीस बार युद्ध होता है । जरासंध के भाई कालयवन के भयंकर आक्रमण देखकर, यादवसेना उस समय पश्चिमी तट पर हट जाना उचित समझती है। देवियां कृत्रिम धुओं और आग दिखाकर यह भ्रम उत्पन्न कर देती हैं कि यादवसेना और कृष्ण का परिवार जलकर खाक हो गया। शत्रु का अन्त समझकर कालयवन लोट जाता है। यादव-सेना गिरनार पर्वत पर पहुंचती है । वहाँ से वह समुद्र की ओर कूच करती है। कृष्ण और बलराम समुद्र में रास्ता पाने के लिए दर्भासन पर बैठकर उनवास करते हैं। तभी इन्द्र के आदेश से एक देव आता है और समुन्न को सन्देश देता है । समुद्र बारह योजन हट जाता है । इन्द्र के ही आदेश से वहाँ कुबेर द्वारिका नगरी का निर्माण करता है। दोनों भाई नगरी में प्रवेश करते हैं। इधर शिवादेवी सोलह सपने देखती हैं। सत्रह देवियाँ गर्मशोषन करने आती हैं । नेमि तीपंकर का जन्म होता है । इन्द्र नेमिजिन की स्तुति करता है । श्रीकृष्ण रुक्मिणो का हरण करते हैं, रुक्मिणी का पता उन्हें नारद मुनि देते हैं। इस कार्य में बलराम उनकी मदद करते हैं। शिशुपाल इसका विरोध करता है । युद्ध होता है। रुक्मिणो भयभीत होती है। दोनों भाई रुक्मिणी के साथ द्वारिका में प्रवेश करते हैं । नारद मुनि जम्बूवती कन्या का पता देते हैं। दोनों भाई उपवास कर हरिवाहिनी और खङ्गवाहिनी विद्याएँ प्राप्त करते हैं और कृष्ण जम्बूवती से विवाह कर लेते हैं। एक दिन श्रीकृष्ण सत्यभामा के भवन के उद्यान में रुक्मिणी का प्रवेश कराते हैं । सौतिया शाह का सुन्दर द्वन्द्व रचा जाता है । रुक्मिणी और सत्यभामा में ठन जाती है। दोनों में यह सम होता है कि पहले जिसके पुत्र का कुवराज की कन्या से विवाह होगा, दूसरी के सिर के बाल
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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