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इस प्रकार सत्यभामा, रुक्मिणी और जाम्बवती को मिलाकर उनकी कुल आठ पट्टरानियाँ होती हैं 1
रिट्टणेमिचरित और हरिबंशपुराण
fighter के यादवकाण्ड की कुछ घटनाएं और कथाएं 'हरिवंशपुराण' में नहीं हैं । ऐसा होना सहज है । 'हरिवंशपुराण' पुराण है, और पुराण विस्तार चाहता है। इस कारण अन्तर होना स्वाभाविक है। 'हरिवंदापुराण के अनुसार नेमिनाथ का जन्म शौर्यपुर में होता है जबकि रिभिवरिज के अनुसार उनका जन्म द्वारिका में होता है । यह अन्तर तथ्यात्मक अन्तर है, जो विस्तार से विचार की अपेक्षा रखता है। स्व० डॉ० हीरालाल जैन तथा स्व० डॉ० आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये (ज्ञानपीठ मुर्तिदेवी ग्रन्थमाला के प्रधान सम्पादक य) ने 'हरिवंशपुराण' ( डॉ० पन्नालाल जैन, साहित्याचार्य द्वारा सम्पादित ) की भूमिका में लिखा है- "पुराण विषयक जैन ग्रन्थों की संख्या संकड़ों में है और वे प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश तथा तमिल, कन्नड़ आदि सभी भारतीय भाषाओं में मिलते हैं। इन विविध रचनाओं में वर्णनभेद पाया जाता है जिसका परस्पर तथा वैदिक पुराणों के साथ तुलनात्मक अध्ययन अनुसंधान एक रोचक और महत्त्वपूर्ण विषय है। जैन 'हरिवंशपुराण' में उक्त प्रकार से विषय प्रतिपादन के साथ-साथ हरिवंश की एक शाखा यादवकुल और उसमें उत्पन्न हुए दो शलाकापुरुषों का चरित्र विशेष रूप से वर्णित हुआ है। एक बाईसवें तीर्थकर नेमिनाथ और दूसरे नवे नारायण श्रीकृष्ण । ये दोनों चचेरे भाई थे। इनमें से एक ने अपने विवाह के समय निमित पाकर संन्यास ले लिया और दूसरे ने कौरव - पाण्डव युद्ध में अपना बल कौशल दिखलाया। एक ने आध्यात्मिक उत्कर्ष का आदर्श प्रस्तुत किया, दूसरे ने भौतिक लीला का एक ने निवृत्तिपरायणता का मार्गे प्रदास्त किया, दूसरे ने प्रवृत्ति का महाभारत का कथानक सम्मिलित पाया जाता है। इस विषय की संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश की प्राचीन रचनाएँ बहुसंख्यक हैं। 'हरिवंशपुराण' के नाम से संस्कृत में धर्मकीति श्रुतकीर्ति, सकलकीर्ति जयसागर जिनदास व मंगरस कृत काव्यग्रन्थ हैं ।
इसी प्रसंग से 'हरिवंशपुराण' में
'पाण्डवपुराण' नाम से श्रीभूषण, शुभचन्द्र वादिचन्द्र जयानन्द, विजयगणि, देवविजय, देवप्रभ, देवभद्र और शुभवर्धन कृत काव्यग्रन्थ हैं ।
निर्धारित के नाम से सूराचार्य, उदयप्रभ, कीर्तिराज, गुणविजय, हेमचन्द्र, भोजसागर, तिलकाचार्य, विक्रम नरसिंह, हरिषेण नेमिदत्त आदि कृत रचनाएं ज्ञात हैं।
प्राकृत में रत्नप्रभ, गुणवल्लभ और गुणसागर द्वारा रचित रचनाएँ हैं । तथा अपभ्रंश में स्वयंभू, धवल, मश: कीर्ति, श्रुतकीर्ति, हरिभद्र, रयधू द्वारा रचित पुराण व काव्य ज्ञात हो चुके हैं।
इन स्वतन्त्र रचनाओं के अतिरिक्त जिनसेन, गुणभद्र व हेमचन्द्र तथा पुष्पदंत कृत संस्कृत एवं अपभ्रंश महापुराणों में भी यह कथानक वर्णित है एवं उसकी स्वतन्त्र प्राचीन प्रतिमां भी पाई जाती हैं। हरिवंशपुराण, अरिष्टनेमि या नेमिचरित पाण्डवपुराण व पाण्डवचरित आदि नामों से न जाने कितनी संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश रचनाएँ अभी भी अज्ञात रूप से भण्डारों में