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काम-तमामकर, तलवार लेकर आक्रमण करते हुए कंस को पटककर मार डालते हैं। श्रीकृष्ण हंस पड़ते हैं। वह अनावृष्टि के साथ वसुदेव के पास जाते हैं। उग्रसेन-पपावती को बन्धनमुक्त करते हैं। इधर जीवद्याशा अपने पिता जरासंध के पास पहुंचती हैं। __कृष्ण के पास राजा सुकेतु का आता है और सबमार से विवाह करने का निवेदन करता है । कृष्ण निवेदन स्वीकार कर लेते हैं । बलराम सत्यकेतु के भाई रतिमाल की कन्या रेवती का पाणिग्रहण करते हैं।
इपर जीवद्याशा से पूरी बात सुनकर जरासंध यम के समान भयंकर अपने पुत्र कालयवन को भेजता है। शत्रुओं से सत्रह बार युद्धकर वह अतुल मालावत पर्वत पर वीर- गति को प्राप्त होता है। पश्चात् जरासंघ का भाई अपराजित जाता है। तीन सौ छयालीस बार युद्ध कर वह भी अन्त में श्रीकृष्ण के बाण का लक्ष्य बनता है।
शौर्यपुर में, तीर्थकर नेमिनाथ के गर्भ में आने के पहले ही समुद्रविजय के घर पन्द्रह माह तक रत्नों की वर्षा होती है। शिवादेवी स्वप्न देखती है । इन्द्र के आदेश पर कुबेर माता-पिता का अभिषेक करसे हैं । नेमि जन्म लेते हैं । सुमेर पर्वत पर उनका अभिषेक होता है । कुबेर शौर्यपुर की शोभा बढ़ाता है । इन्द्र जिनेन्द्र की स्तुति करता है। शौर्यपुर में शिशु मेमि बढ़ने लगते हैं। घह जब कुछ बड़े होते हैं तो इन्द्र 'महानन्द' नाटक का अभिनय करता है जिसमें ताण्डव नृत्य सम्मिलित है। ___ अपराजित की मृत्यु सुनकर जरा संघ संतप्त हो उठता है। वह मित्र-राजाओं को युद्ध में पहुंचने का निमन्त्रण देकर कूच करता है । वृरिण और भोजकवंश के लोग विचार विमर्श कर शौयपुर से बाहर निकलते हैं, पश्चिम दिशा में कहीं आथप की खोज में । उन्हें विध्याचल मिलता है। जरासंध पीछा करता है 1 भाग्य के नियोग से अर्घभरत क्षेत्र में निवास करने वाली देवियां अपनी विक्रिया से बहुत-सी चिताएँ रचकर यादवों को उनमें जलता हुआ दिखाती हैं। एक बुढ़िया से यह जानकर कि यादव आग में जल मरे, वह लौट जाता है। दशाई, महाभोज, वृष्णि और कृष्ण समुद्रतट पर पहुंचते हैं, उसमें प्रवेश करना सम्भव नहीं देखकर कृष्ण और बलराम तीन दिन का उपवास करते हैं। इन्द्र के आदेश से समृद्र हट जाता है। कुबेर द्वारिका नगरी की रचना करता है। बारह योजन लम्बी और नौ योजन चौड़ी। सब लोग वहाँ रहने लगते हैं । नेमिकुमार का भी बचपन वहाँ बीतने लगता है।
नारय मुनि, कृष्ण की अनुशा से उनके अन्तःपुर में प्रवेश करते हैं। सत्यभामा दर्यण में मुंह देखने के कारण, उन्हें नहीं देख पाती है। नारद इसे अपनी अवज्ञा समझते हैं। मन में गोठ बांधकर, बह राजा भीष्म के रनिवास में जाते हैं। उनकी दृष्टि विदर्भराजकमारी रुत्रिमणी पर पड़ती है। वह उसके हृदय-पटल पर कृष्ण का सौन्दर्य चित्रांकित कर देते हैं और उसका चित्रपट बनाकर द्वारिका में कृष्ण को दिखाते हैं। इधर रुक्मिणी की बुआ उसे मुनि अति मुबतक के भविष्य कथन की याद दिलाती है जिसके अनुसार उसे श्रीकृष्ण की पट्ट रानी होना है । रुक्मि अपनी बहिन का विवाह शिशुपाल से करना चाहता है। बुझा रुक्मिणी का अभिप्रायः जानकर श्रीकृष्ण को लेखपत्र पहुँचाती है जिसमें उल्लेख है कि रुक्मिणी नागदेव की पूजा के दिन बाहर उद्यान में मिलेगी । श्रीकृष्ण वहां पहुंचकर उसका अपहरण करते हैं। वह अपने हाथों उसे रथ पर बैठाते हैं । शिशुपाल और श्रीकृष्ण में जबर्दस्त भिड़त होती है । पहले तो रुक्मिणी को विश्वास नहीं होता कि श्रीकृष्ण और बलराम रुनिम की भारी सेना से निपट