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तुम्हारा शत्र बढ़ रहा है उसकी खोज की जानी चाहिए । कंस ने दिन का उपवास किया, जिसमें पूर्वजन्म में सिद्ध देवियां उसकी सहायता के लिए आयीं। एक देवी उम्र मयंकर पक्षी बनकर गयो, बालक ने उसकी चोंच तोड़ दी। दूसरी प्रपूतना भूतनी का रूप बनाकर पहुंची और स्तन से विषपान कराने लगी। बालक के काटने से वह चिल्लाती हुई भाग गयी । बालक कभी सोता है, कभी बैठता है, कभी छाती के बल रेंगता है। कभी दौड़ता है, कभी मधुर अलाप करता है, कभी मक्खन खाता है, इस प्रकार दिन-रात व्यतीत करता है।
तीसरी देवी शकट का रूप धारण कर आती है । बालक लात मारकर उसे नष्ट कर देता है। यशोदा कृष्ण का पैर उलखल से बांध देती है। दो देवियाँ यमल और अर्जुन वृक्ष का रूप पारण करके आती हैं, कृष्ण उन्हें गिरा देते हैं। छठी देवी बैल के रूप में आती है, कृष्ण उसे परास्त करते हैं। सातवीं देवी तीन वर्षा बनकर आती है, कृष्ण गोवर्धन उठाकर उसे रोकते हैं। देवकी को इन घटनाओं का पता चलता है तो वह बलराम के साथ चुपचाप कृष्ण को देखने के लिए उपवास के बहाने गोकुल जाती हैं और देखती हैं कि श्रीकृष्ण बनखण्ड में मुरली बजा रहे हैं, गोप गा रहे हैं, गायें चर रही हैं। वह प्रसन्न होती है। नन्दगोप यशोदा के साथ, उनका स्वागत करते हैं । पुत्र को देखकर देवकी के स्तन पनहा उटते हैं । भेद खुलने के भय से, बलराम दूध के बड़े से मां का अभिषेक कर देते हैं । देवकी मथुरा वापस आती है । बलदेव श्रीकृष्ण को चुपचाप विद्याओं में पारंगत करते हैं । यह बालक्रीड़ाओं के साथ प्रस्फुटित स्तनोंबाली गोपियों को रासलीला कराते हैं, और स्वयं निविकार रहते हैं। जिनसेनाचार्य का कहना है कि जिस तरह संयोग में अतिशय अनुराग होता है उसी तरह वियोग में विरह-वेदना बढ़ जाती है।
कंस कृष्ण को लोकोत्तर लीलाओं से बहुत चितिस है। वह उन्हें खोजने गोकुल आता है । आत्मीयजन बालक को बाहर भेज देते हैं। रास्ते में जब वह लकड़ी के बड़े-बड़े खम्भे उठाते हैं तो मां यशोदा को पूरी तरह से विश्वास हो जाता है कि उसका बेटा अद्भुत शक्तिशाली है। उन्हें गोफूल वापस बुला लिया जाता है । कंस की घोषणा के अनुसार, करुण नागशय्या पर चढ़ते हैं, धनुष को होर सहित कर उसके दो टुकड़े करते हैं और शंख फूंक देते हैं। बल राम कंस की चालाकी ताड़ लेते हैं और कृष्ण को गोकुल भेज देते हैं। कंस के आदेश पर यमुना-सरोवर में कालिय सर्प का दमन करते हैं और कमल तोड़कर लाते हैं। कंस चिन्ता से व्याकुल हो उठता है । वह मथुरा में पहलवान इकट्ठे करता है । वसुदेव अपने पुत्र अनावृष्टि से परामर्श फर अपने बड़े भाइयों को फौजफाटे के साथ मथुरा बुला लेते हैं। कंस को यह बताया जाता है कि वे अपने भाई को देखने मथुरा आये हैं । एक दिन बलराम यशोदा को झूठमूठ खूब डांटते हैं। यह रो पड़ती है। श्रीकृष्ण को यह अच्छा नहीं लगता। वह बलराम से यशोदा के प्रति इस अकारण अविनय का कारण पूछते हैं। बस राम जीबंजसा (जीवद्यशा) के कटुवचन से लेकर अब तक की समूची घटनाएं सुनाते हैं और बताते हैं कि कंस द्वारा मल्लयुद्ध का आयोजन उसी षड्यन्त्र का एक अंग है । यह सुनकर कृष्ण आगबबूला हो उठते हैं । वस्तुत: बलराम यही चाहते थे। वे मथुरा के लिए कूच करते हैं।
रास्ते में तीन असुर ऋमशः नाग, गधा और घोड़े का रूप बनाकर कृष्ण को डराते हैं परन्तु बह उनको मार भगाते हैं। चम्पक और पादामर हाथी भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाते। बलराम और कृष्ण का चनसे मल्लयुद्ध होता है। उसमें कृष्ण कंस के दोनों प्रमुख महलों का