________________
सीलाओं का मुख्य स्रोत क्या है । बहुत-सी चमत्कारी लीलाएँ श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव करते हैं. श्रीकरण का बेटा प्रद्युम्न करता है, परन्तु जिस तरह की लीलाएं श्रीकृष्ण के बचपन और मौवन से जुड़ी हुई हैं, वे नयी हैं और ऐसी हैं कि जिनकी उपेक्षा करना जन पुराणकारों के लिए सम्भव नहीं था । जराकि कहा जा चुका है, और जैसाकि पाठक देखेंगे कि चाहे स्वयंम हो या पुष्पदन्त, दोनों कृष्ण की बाल देवी-लीलाओं का जो विस्तार से वर्णन करते हैं, दूसरे कारणों के अलावा, इसका एक कारण लोकरुचि भी रहा होगा । चूंकि जिनसेनाचार्य के 'हरिवंशपुराण' और महाकवि स्वयंभू के रिडणेमिचरित' में वर्णित उक्त लीलामों और दूसरी बातों में कतिपय असमानताशों के बावजुद काफी कुछ समानताएँ है, अत: तुलनात्मक अध्ययन के लिए 'हरिवंगपुराण' के घटनाक्रम का संक्षिप्त विवरण यहाँ देना उचित होगा ।
हरिवंश की उत्पत्ति का विवरण देते हुए हरिवंश-पुराण के रचयिता उसका सम्बन्ध कौशाम्बी के राजा मुमुख और वनमाला से जोड़ते हैं। इसका उल्लेख पिछले पृष्ठों में किया जा चुका है। जहाँ तक प्रारम्भ से लेकर समुद्रविजय द्वारा राज्य की बागडोर सम्हालने तक का सम्बन्ध है यह घटनाक्रम दोनों में बहुत कुछ समान है।
यादव-काण्ड के तीन नाथक
'रिष्णेमिचरित' के यादव कापड में तीन लीलानायक हैं- वसुदेव, श्रीकृष्ण और प्रद्युम्न । शम्बुकूमार प्रद्युम्न के बाद आता है, वैसे वह भी कम करामाती और शौर्य सम्पन्न नहीं है, परन्तु कषियों ने बिस्तार-भय से उसके ब्यक्तित्व को अधिक नहीं उभारा । ये तीनों पदुवंशी है। उन्हें लीलाविलाम पूर्वभव के पुण्य के प्रभाव से मिला या यह आदिपुरुष 'हरि' के रक्त का प्रभाव था, मह शोध का विषय है। वसुदेव और प्रद्युम्न की लीलाओं के वर्णनक्रम में रिदणेमिचरिउ' क लीला वर्णन क्रम से थोड़ी भिन्नता है, जिसकी चर्चा अन्यत्र प्रसंग आने पर की जाएगी। बहरहाल श्रीकृष्ण के बाल्यकाल की लीलाओं से लेकर कंसवध का (कंस भी यवंशी था) जो रूप 'हरिवंशपुराण' में मिलता है, वह यहां दिया जाता है। जिनसेन लिखते हैं जैसे-जैसे धवकी का गर्भ बढ़ रहा था वैसे-वैसे कंस उसकी प्रतीक्षा कर रहा था, परन्तु फष्ण सातवे ही माह में उत्पन्न हो गये, इसलिए कंस को इसका पता नहीं चल सका। उनके जन्म पराभ चिहप्रकट हुए धनघोर वर्षा के कारण वसदेव ने छत्र तान लिया और बलराम ने बालक को उठा लिया। रात में वे घर से निकले, गोपुर के द्वार चालक के पैरों के स्पर्श से खुल गये। वे प्युपचाप नगर के बाहर आ गये। बालक की नाक में पानी की बूंद चली गयी और यह जोर से छींका, उसका स्वर गम्भीर था । गोपुर के ऊपर उग्रसेन रहते थे। उन्होंने असीस वी, "तू निविघ्न रूप से चिरकाल तक जीवित रह ।" बलदेव और वसुदेव ने उग्रसेन से यह रहस्य किसी को न बताने का अनुरोध किया। नगर के बाहर एक बैल अपने सींग के प्रकाश में उन्हें ले गया। श्रीकृष्ण के प्रभाव से पमना का असण्ड प्रभाव स्वहित हो गया। वे नदी पारकर वृन्दावन पहुँचे । अत्यन्त विश्वसनीय सुनंद गोप और यशोदा की पुत्री से बदलकर वे वापस आ गये । प्रसव की खबर लगने पर कंस देवकी के कमरे में गया, यह सोचकर कि कहीं इसका पति मरी मृत्यु का कारण न बन जाए, उसने नवजात कन्या की नाक चपटी कर दी।
उधर वृन्दावन में बालक का नाम कृष्ण रखा गया। यह अत्यन्त सुन्दर श्रेष्ठ चिह्नों तथा रेखाओं से युक्त थे। इस बीच कंस का भला चाहने वाला वरुण ज्योतिषी उससे कहता है कि