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(२७) श्रीकृष्ण इन्द्र के उपवन से कल्पवृक्ष उखाड़ कर लाते हैं और द्वारिका के उपवन में उसे लगा देते हैं। राजकुमारियां श्रीकृष्ण की सेवा करती है । रुक्मिणी श्रीकृष्ण की सबसे प्रिय पत्नी है। रुक्मि की कन्या क्मिवतो स्वयवर में प्रद्युम्न का वरण करती है। रुक्मिणी की कन्या चारुमती का विवाह कृतव मां के पुत्र बाल से होता है । रुक्मि अपनी पोती रुक्मिणी के पोले (नाती) अनिरुद्ध को ब्याह देता है, यद्यपि यह विवाह धर्म के अनुकल नहीं होता। विवाहोत्सव में क्मि बलराम से जुआ खेलता है और मारा जाता है।
वाणासुर महात्मा बलि का पुत्र है । ताण्डवनृत्य में बाध बजाकर उसने शिव को प्रसन्न कर लिया है। उसकी कन्या ऊषा स्वप्न' में प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध को देखकर मोहित हो जाती है। उसकी सहेली चित्रलेखा कई चित्र बनाती है। उनमें से वह अनिरुद्ध को अपना प्रिय बनाती है। चित्रलेखा आकाशमार्ग से अनिरुद्ध को अन्तःपुर में ले जाती है । दोनों रमण करते हैं। खा को गर्म रह जाता है। पहरेदारों से पता चलने पर, वाणासुर अन्तःपुर में जाता है। वह अनिरुद्ध को नागपाश से बाँध लेता है । नारद से अनिरुद्ध का पता पाकर श्रीकृष्ण शोणितपर पर हमला करते हैं। शंकर वाणासुर की सहायता करते हैं। अन्त में शंकर के अनुरोध पर श्रीकषण बाणासर के हाथ काटकर उसे छोड़ दते हैं । अनिरुद्ध और ऊषा का विवाह होता है।
बलराम नन्द और गोपियों से मिलने के लिए ब्रज जाते हैं, नन्द व यशोदा को प्रणाम करते हैं। बालबाल, गोपियां उनसे श्रीकृष्ण के समाचार पूछती है और जानना चाहती हैं कि क्या बे हमारी याद करते हैं? क्या वे नन्द और यशोदा को देखने के लिए यहाँ आएंगे? क्या वे हमारी सेवा का स्मरण करते हैं ? वे हमें छोड़कर परदेश चले गये। वे अपने ग्राम्य परिख के ईज्य को स्वीकार करती हुई नार की स्त्रियो पर व्यग्य करती हैं। उन्हें विश्वास किनार वनिताएँ चतुर होने से कृष्ण की मीठी-मीठी बातों में नहीं फेंसी होंगी। वे अतीत को समति कर रोने लगती हैं । बलराम उन्हें सान्त्वना देते हैं । वे चैत और वैशाख के महीने वहीं बिताते है। गोपियों के साथ यमुना में जलकाड़ा करते हैं ।
इधर बलराम की अनुपस्थिति में पौं ड्रया वासुदेव होने का दावा करता है। कृष्ण पौड़क और काशीनरेश पर आक्रमण कर युद्ध में उनके सिर धड़ से अलग कर देते हैं। काशीराज का पुत्र सुदाक्षिण, पिता का वध करनवाले श्रीकृष्ण के वध के लिए, शंकर के उपदेश से दक्षिणाग्नि की अभिचार विधि से आराधना करता है। वह कृष्ण के लिए अभिचार (मारण का पुरश्चरण) करता है। मूर्तिवान अग्निदेव यज्ञ-कुण्ड से उठता है और द्वारिका को भान करने के लिए पहुंचता है । श्रीकृष्ण इस माहेश्वरी कुत्य को पहचान जाते हैं, सुदर्शन चक्र से वे उसकी हत्या कर देते हैं । बलराम भौमासुर के मित्र द्विविद वानर के उत्पात को शान्त करते हैं। जाम्बवती का पुत्र शाम्ब दुर्योधन की कन्या लक्ष्मणा को स्वयंवर से हरकर ले आता है। कौरव उसका पीछा करते हैं । वे शाम्ब को बांधकर लक्ष्मणा को हस्तिनापुर से आते हैं। इसकी यवंशी पर गहरी प्रतिक्रिया होती है । यदुवंशी आक्रमण करना चाहते हैं, परन्तु बलराम रोक देते हैं। वह हस्तिनापुर जाकर एक उपवन में ठहर जाते हैं और उद्धथ' को धृतराष्ट्र के पास भेजते हैं । कौरव उनकी अगवानी करते हैं। वे नववधू के साथ शाम्ब को वापस करने की मांग करते हैं। कौरव यह सुनकर तिलमिला उदते हैं। कोरवों के अपशब्दों से बलराम को क्रोध आ जाता है। वे हल की नोक से हस्तिनापुर को उबाड़ देते हैं । कौरव क्षमा मांगकर शाम्ब और लक्ष्मणा को लौटा देते हैं। भारी दहेज के साथ बलराम वापस लौटते हैं। नारद श्रीकृष्ण की