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________________ (२६) देता है। श्रीकृष्ण वह मणि उग्रसेन को देने के लिए कहते हैं, जिसे बह अस्वीकार कर देता है। सत्राजित का भाई प्रसेन वह मणि पहिनकर जंगल में जाता है। एक सिंह उसे मारकर मणि छीन लेता है, उससे यक्षराज जाम्बवान छीन लेता है । मत्राजित् कृष्ण पर शंका करता है। श्रीकृष्ण यमराज की गुफा से उस मणि को ईलकर लाते हैं। श्रीकृष्ण जाम्बवान को घूसों से मार डालते हैं। श्रीकृष्ण बारह दिनों तक जब गुफा से नहीं निकले तो लोग घर चले जाते हैं। श्रीकृष्ण के न लौटने पर वारिफा में कुहराम मच जाता है। लोग सत्राजित् को बुरा-भला कहने लग जाते हैं। द्वारिकावाले दुर्गादेवी की उपासना करने लग जाते हैं। श्रीकृष्ण आकर सत्राजित् की मणि सीप दत है । अन्त में श्रीकृष्ण उससे सत्य भामा स्वीकार कर लेते हैं, साथ ही कह स्यमंतक मणि न लेकर उसके बदले में उससे निकलने वाला सोना लेते रहना स्वीकार कर लेते हैं। लाक्षागृह में पांडवों के जल मरने की बात सुन कर, श्रीकृष्ण और बलराम हस्तिनापुर जाते हैं और भीष्म पितामह आदि से मिलकार सान्त्वना प्रबन्ट करते हैं। इधर द्वारिका में अक्रूर और कृतवर्मा शतधन्धा से कहते हैं, "तुम सत्राजित् से स्यमंतक मणि छीन लो, क्योंकि उसने हमसे छलकर सत्यभामा श्रीकृष्ण को म्याह दी।" पिता के वध को देख कर सत्यभामा जोर से विलखती है, फलतः श्रीकृष्ण शतधन्वा को मार डालते हैं। अक्रूर और कृतवर्मा द्वारिका से भाग खड़े होते हैं । अक्रूर श्वफल्क के पुत्र थे । अवर के द्वारिका से चले जाने पर यहाँ बहुल उत्पात होते हैं । श्रीकृष्ण अक्रूर को बुलयाते हैं और स्यमंतक मणि के बारे में पूछते हैं और एक बार उसे दिखा देने के लिए कहते हैं जिससे बलराम, सत्य'भाभा और जाम्बवती का सन्देह दूर हो जाए। समका सन्देह दूर कर श्रीकृष्ण वह मणि अऋर को लौटा देते हैं । इसके बाद श्रीकृष्ण के कई विवाह हुए। वह पाण्डयों से मिलने के लिए इन्द्रप्रस्थ जाते हैं । वर्षाकाल वहीं बिताते हैं । वे अर्जुन के साथ शिकार खेलने जाते हैं । सूर्यपुत्री कालिन्दी, जो यमुना में रहती है, कृष्ण से विवाह करती है। वे युधिष्ठिर के पास जाते हैं। श्रीकृष्ण विश्वकर्मा से कहकर पाण्डयों के लिए सुन्दर भवन का निर्माण करा देते हैं। खांडव वन अग्निदेव को दिलवाने के लिए वे अर्जुन के सारथी बन जाते हैं । खांडव वन में भोजन मिल जाने पर अग्निदेव प्रसन्न होकर गांडीव धनुष, चार श्वेत घोड़े, एक रथ, दो अटूट बाणों वाले तरक्रस और अभेद्य कवच देते हैं । कृष्ण द्वारिका लौटते हैं। वहाँ कालिन्दी का पाणिग्रहण करते हैं । अवन्ती के राजा बिन्द और अनुविन्द दुर्योधन के पक्षधर हैं, उनकी बहन मित्रवन्दा कृष्ण को चाहती है । वह उनकी बुआ की कम्या है। कृष्ण कोसस देश के राजा की कन्या सस्या से भी विवाह सात बैलों को परास्त कर करते हैं । यह द्वारिका आ जाते हैं । कृष्ण की बुआ श्रुतकीर्ति केकय देश में रहती है। उसकी कन्या भद्रा है। उसका भाई सन्तदैन उसे कृष्ण को दे देता है। मद्रदेश के राजा की कन्या सुलक्षणा का कृष्ण स्वयंवर में हरण करते हैं । भौमासुर का वधकर कृष्ण उसकी सोलह हजार कन्याओं का उद्धार करते हैं और उनसे विवाह कर लेते हैं । पश्चात् श्रीकृष्ण गदा के प्रहार से मुर राक्षस का अन्त करते हैं। भौमापुर के वध पर श्रीकृष्ण के गले में पृथ्वी घेजयन्ती माला डास देती है। वह कुण्डल, वरुण का छत्र और महामणि भी देती है। भगवान् की स्तुति के स्वर निकलते हैं। भौमासुर के पुत्र भगदस को अभयदान मिलता है।
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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