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(२५)
देश में द्वारिका आ जाते हैं । कालमन उनका पीछा करता है । श्रीकृष्ण उसको खूब छकाते हैं। श्रीकृष्ण पर्वत की गुफा में घुस जाते हैं । जरासन्ध गुफा में घुसता है। उसकी ठोकर से मुसुकन्द उठता है, उसकी कोषाग्नि अत्यन्त प्रबल हो उठती है। मुचुकुन्द वस्तुतः मान्धाता का पुत्र था। श्रीकृष्ण उसे दर्शन देते हैं। फिर वे ग्लेच्छरोना का नाश कर सबका धन छीनकर द्वारिका आ जाते हैं।
जरासन्ध पुनः आक्रमण करता है। दोनों भाई भागते हैं, जरासन्ध उनका पीछा करता है। वे प्रवर्षण पर्वत पर चढ़ जाते हैं। ढूंढने पर जब वे नहीं मिलते तो वह आग लगवा देता है और मान लेता है कि वे जल गये। पश्चात् जरासन्ध मगध देश लौट माता है।
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रुक्मिणी विदर्भ देश के राजा भीष्मक की कन्या है। बड़े भाई का नाम रुक्मि है। चार छोटे भाई भी हैं --- वक्मरथ, रुम्ममालि; रुक्मबाहु और रुक्मकेश । दक्मिणी श्रीकृष्ण में अनु रक्त है। रुक्मि कृष्ण से द्वेष रखता है। वह अपनी बहिन का विवाह शिशुपाल से कराना चाहता है । रुक्मिणी एक विश्वासपात्र ब्राह्मण श्रीकृष्ण के पास द्वारिकापुरी भेजती है । वह जाकर श्रीकृष्ण को सब वृत्तान्त सुनाता है। वे ब्राह्मण से कहते हैं, "मैं भी विदर्भकुमारी को चाहता हूँ ।" रुक्मिणी का संकेत था कि विवाह के एक दिन पूर्व होनेवाली देवी की कुलयात्रा में दुहिन को जाना पड़ता है, इसलिए वहाँ नगर के बाहर गिरिजा के मन्दिर के सामने वह उनके चरणों की धूल प्राप्त करना चाहेगी।
इधर म के जोर देने पर भीष्मक शिशुपाल से अपनी कन्या का विवाह करने की तैयारी कर रहे होते हैं । गिरिजा मन्दिर से श्रीकृष्ण रुक्मिणी का हरण कर ले जाते हैं । रुक्मि प्रतिरोध करता है, परन्तु रुनिमणी के भाई के प्राणों की भीख मांगने पर कृष्ण उसे विरूप बनाकर बन के दुपट्टे से बाँध द्वारिका ले आते हैं । बलराम उसे मुक्त कर देते हैं । रुक्मि अपमान और लज्जा के कारण कुण्डिनपुर नहीं जाता, वह भोजकटक नगरी बसाकर उसमें रहने लगता है, इस प्रतिज्ञा के साथ कि वह कृष्ण को मारकर रुक्मिणी के साथ कुण्डिनपुर में प्रवेश करेगा। श्रीमद्भागवत के अनुसार, कामदेव वासुदेव का ही अंग है। वह पहले स्तदेव की कोधाग्नि में भस्म हो गया था, जो अब रुक्मिणी के पुत्र के रूप में प्रद्युम्न के नाम से उत्पन्न हुआ । कामरूपी शम्बरासुर उन्हें उठाकर समुद्र में फेंक देता है। उसे एक मछ निगल लेता है। घूमफिरकर वहीं मच्छ शम्बरासुर के रसोईघर में पहुंच जाता है। फाड़ने पर उसमें शिशु प्रम्न निकलता है, जिसे दासी मायावती को दे दिया जाता है। मायावती पूर्व जन्म की रति है । यह दाल भात बनाती है। वह शिशु को प्यार से पालती है। है । प्रद्युम्न के पूछने पर वह अपना परिचय देती है । शम्बरासुर को मारने के लिए वह प्रद्युम्न को माहामाया नाम की विद्या सिखाती है। प्रद्युम्न शम्बरासुर से युद्ध करता है । विजयी प्रद्म मनको मायावती रति आकाशमार्ग से द्वारिकापुरी ले जाती है। अपन को देखकर मणी को अपने पुत्र की याद आ जाती है। नारद वस्तुस्थिति स्पष्ट करते हैं ।
मायावती उस पर मुग्ध हो उठती
सत्राजित ने पहले कृष्ण को कलंक लगाया था लेकिन अब वह स्यमंतक मणि सहित अपनी कन्या सत्यभामा श्रीकृष्ण को दे देता है। यह मणि उसे सूर्य ने उपासना से प्रसन्न होकर दिया था । 'मणि' को देव मन्दिर में स्थापित कर दिया जाता है। वह मणि प्रतिदिन आठ भार' सोना
भार का परिणाम ४ बीहि = १ गंजा, ५ गुंजा = १ पण, म पण = १ धरण, ८ धरण - १ कर्ष, ४ कप - १ पल, १०० पल - १ तुला, २० तुला १ भार ।
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