________________ परिशिष्ट] [166 अप्सराओं के साथ / रणवर्णण-आधे से आधे क्षण में। 6. दुहिवमाल-इंदुभि का शब्द / सिक्कार-णिणाउ–घाद्य विशेष का शरुद। सिवाय वलएण-त्रिवातवलय के द्वारा। सयसक्र —सौ टुकले। 10. वसुबह-वसुपति, कुबेर / णीसरेहि--नरेशों के द्वारा। नौवाँ सर्ग 1. छत्तिय भिसिय-फमंडल-हत्य-छत्ता, आसन ओर कमण्डलु जिनके हाथ में है, ऐसे नारद / जोगवट्टया किय-विरगह-जिनका शरीर योगपट्टिका से अलंकृत है।। 2. अवहि-अवग्रहों के द्वारा अवग्रह पारिभाषिक शब्द है। शरीरप्रमाण दूरी से आकर पूज्य व्यक्ति को प्रणाम करना अवग्रह है / कुंबलपुरहो होंतज-कुण्डलपुर से होते हुए। 6. किरणावलि घिव तरुविदहो ...जहाँ वृक्ष-सम.ह से किरण-समूह ग्रहण किया जाता है 1 मंदर--मंदराचल। दारइकसतोरबियतुरंगम-.-लकड़ी और चाबुक से जिसके घोड़े उत्तेजित हैं। सणए--संकेत के द्वारा / जउवण-यदुनन्दन, श्रीकृष्ण / 7. भिन्च-मृत्य। लडि-लकुटी। आजोसमण-आकोमा मनवाले। यम का विशेषण / ___६.णिइ-विस्थापित किया जाता है / सत्तताल --सप्न ताल / मुवावज्ज-मुद्रावज्र, अगूठी / असिगाहिणि-असत् को पकड़ने वाली। बाहिगिहे-वाहिनी को, सेना को।। 17. साइउ---आलिंगन / रुपिणीषिउप संतत्त—कफिमणी-वियोग-संतप्त, रुक्मिणी के वियोग से संतप्त। 11. पल्लवलवंतई–प्रबल रूप से बलवान। कंभयलोलोक्खल विदई-गंडस्थल रूपी चंचल ऊखल / 15. विमम्भाहिय-सुयकत-विदर्भराज की कन्या के पति, श्रीकृष्ण के द्वारा। ठहज्जइ-स्थाप्यते, स्थापित किया जाता है। परिछिज्जई-परिक्षीयते, क्षीण हो जाता है। असई--असती, कुलटा / 16. मिसि-पहरणु-निशा प्रहरण, निनास्त्र। सपबत्तई-शतपत्र, कमल / विषयत्यु-- दिन-अस्त्र / पाय-पहरणु-पन्नग-अस्त्र / नेइ-परि-चेदिराज ने। बहुरूवंतरिहिअनेक रूपान्तरों में। 17. सरकर-परिहत्थे - तीरों गौर हायों की क्षिप्रता से / सिरिवत्य -श्रीकृष्ण के द्वारा। चेइथे—पेदिपतिना, चेदिराज द्वारा समजालीहवउ- समज्जालीभूतः, ज्वाला के समान हो गया। बाइबस-बूबउ---यमदूत / थियउ-स्थितः। दसवाँ सर्ग 2. पडिबारउ-प्रतिबार, फिर से।दारीपद-विशाल कमल : तिरपण-विवज्जिय:पोरन से रहित / जविखलवेधे-पक्षदेव ने / जपलगामिपिउ-आकाशतलगामिनी। 3. सस-रहिन / लनुयारी-छोटी / रेवइह-रेवती को। पुन मोरह ---मनोरथ पूरा हुआ।