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के । पाहिला जुने-- प्रथम युद्ध में ।
४. कालथवणु----कालयवन । कुलिसाहयउ — कुलिशाहत हरिभयगम — सिह्भयगत । पायार - प्राकार। विसिवविसिहि दिशाओं- अपदिशाओं में ।
[सयंभूवकिरिमिचरिउ
६. एक्को
एक उदर से उत्पन्न, सहोदर । सविणहिउ तैयार हो गये। महोबट्टेधरती के मार्ग में । अकुलोण धरती में नहीं समानेवाला, जो कुसीन न हो, अप्रतिष्ठित । कुलीन - बरती में समाने वाला, प्रतिष्ठित 1
७. दारुणहं-रणहं भयंकर युद्ध में रहू - रथ समावडिउ – आ पड़ा। बद्धामरिसजिसने क्रोध किया है ।
८. रगमूहि युद्ध में । बंधुरयेण बन्धुबान्धवों ने विसाणु – लीग | पवारललकारता है ।
६. सह-सामने। सज्सु-साध्य | अवकमइ आक्रमति, आक्रमण करता है। अनंतें श्रीकृष्ण द्वारा कमकर सिर-चरण कर और सिर ।
११. पज्ञ प्रतिज्ञा । चउरंगाणीया लंकरियउ - चतुरंग सेना से अलंकृत । मग्गाणु लग्गु मार्ग में पीछे लगा हुआ ।
१२. चीज – चिता । उम्मुरियड मूच्छित हो गयीं। तहोतणेण मण- उसके भय के
कारण ।
आठवाँ सगँ
१. ललिय-लक्ष्मी | कोटह— कौस्तुभ उदालित उद्दालितः, छीन लिया। सरह -- सरभ, वेग से । सरियउ सरितः, हट गया। धगर-धनद 1
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२. सरदार शौर्यपुर के दशाई में ज्येष्ठ माहूट्ट – अर्द्धनि, साढ़े तीन पहरणभरियगत्तु - जिसका शरीर हथियारों से भरा है। सक्काएसे शक के आदेश से उप्यज्जेसह उत्पन्न होंगे।
३. सिववि गम्भही सोहणं शिवादेवी के गर्भ का शोधन करने के लिए। सवाहणावाहनों सहित | पक्कयाउ - पहुँची :
४. पाविक प्रत्येक । चञ्चविसाणु चार दांतों वाला बुरूपमाणु - युक्त प्रमाण वाला । रिस-रंखोलिए- पुच्चा ईर्ष्या से पूंछ को हिलाता हुआ बैल। सुरकरि अहिसारीऐरावत पर चलने वाली । विट्ठल
- लक्ष्मी देखी।
५. परिमल परिमितिय चललि मुलु– पराग से मिले हुए चंचल भ्रमरों से मुखर जलयर - जीव-म्- जलचर जीवों को जन्म देनेवाला । केसरिविट्ठर — सिंहासन भोइंदथाणु- भोगीन्द्र स्थान, नागलोक ।
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६. कंतिल्लु क्रान्ति से युक्त । छुहारि नियच्छए – चन्द्रमा के दिखने पर 1 तिणाणीतीन ज्ञानों से युक्त सणु सणसणाहु- सूक्ष्म शरीर से युक्त ।
८. मयणइ पखालिय-गंडवासे मद नदी से जिसके गंडस्थल का पार्श्वभाग प्रक्षालित है ऐसे ऐरावत पर । सिक्कार-मारआऊरियासे – जिसने सीत्कार की हवा से सभी दिशाओं को आपूरित कर दिया है। ऐरावत का विशेषण। सत्ताबीसर को डिस- सत्ताईस करोड़
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