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परिशिष्ट ]
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पंणाणा - जिसने विष्णु स्वामी की अवहेलना की है । उरजंग मेण - नाग के द्वारा ।
३. उ गाउ पाउन नागः ज्ञातः सपि मालूम नहीं पड़ा । परमचारु – सर्प | फणकपु- - फलो का समूह विडम्फट-विकल |
४. पियस्य अपने वस्त्र गाउ नाग गिल्लगंड – आर्द्रगंड | वीयउ – द्वितीय । महणे--- मन्धन होने पर |
५. जायवा वि-मादव भी । णेवावियाई — ले जाए गये। घल्लावियाई - बाल दिए गये I मुट्ठिय-मुष्टिक |
६. बोलाविय— बोल का सामान्यभूत। इसके दो रूप हैं-- बोल, बोल । 'ल' द्वित्ववाला रूप भी है, बोल्ल बोल्ल । बोल्ल का एक अर्थं गुजरना या अतिक्रमण करना भी है। जैसेयह फल बोल गया है, यानी सड़ गया है, खराब हो गया है। सोरा उहु-सीरामुन, हलायुध, बलभद्र । भूभूसिय-भौंहों से अलंकृत । कुशाद--पुकार एक सम्भावना यह है कि कूवार के मूल में कोक्का राद हो, कोषकार पुकार कोक्कार को आर कूवार, पुकार, गुहार । ७. रोहिणि देव तरुहेहि रोहिणी ओर देवकी के पुत्रों ने धो-धोबी (धोवक > arasi) | freeरवाहवर यावसाणु – जिसने वस्त्रों में लगी हुई धूल का अन्त कर दिया है ऐसा (धोत्री का विशेषण ) 1 कडिल इं— कटिवस्त्र ।
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८. लावण्णमहाजलभरिय भुमण – लावण्य के महाजल से जिन्होंने विश्व को आपूरित कर दिया है । अप्फोटणश्व महिरिय नियंत—आस्फालन के शब्द से दिगन्त को बहरा बनर देनेवाले | संघरसंचार - महाणुभाव – जो मन्द मन्द संचलन से महान बाशयवाली थी। मंडणप्रशाधन | विजेवि - विभक्त करके ।
६. थोवंतरि थोड़े अन्तर से 1 कलि- प्रसित किया जाता है। वारण- हाथी के द्वारा । सावि-वि- खिलाकर । करिविसाणु हाथीदाँत ।
११. सावण्णमेह - सावन के मेघ अपि असित पक्ष, कृष्ण पक्ष कंबो- नीलकमल ।
अंजणपश्वय- अंजन पर्वत । महामइव – महामृगेन्द्र |
१२. सासह शासक का । जसलाह हो कहो - यश के लोभी कृष्ण के | भामरोह - मल्लयुद्ध की क्रियाएँ । पोडणेहि हाथ की कैंची निकालना, करण, चक्कर खाना, हाथ से चोटें मारना, पकड़, पीड़न ।
१२. श्रवण विठु – विष्णु अवतीर्ण हुए जमलजुण हवस भंगु यमलार्जुन वृक्ष
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भंग ।
१५. कट्टण काटना | सेलियध्वं महत्व – जिसके हाथ में पश्वर का खम्भा है ऐसे, श्रीकृष्ण । महुर · मथुरा । कुसलासलि बाय — एक दूसरे से कुशल समाचार पूछने का काम हुआ ।
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सातवाँ स
१. विणिवाइए – विनिपात होने पर । बाहाविउ -- जोर-जोर से चिल्लायो । वसुजलल्लिय लोयणिय - अत्यधिक अश्रुजल से गीले नेत्रों वाली । अंह- समप्यह्यणजुनकमन्न के समान प्रभावाले नेत्र युगलवाली ।
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२. वाइयउ कट्टा | महोरय-विसमरणु-महोरग के विष का नाया। भगवइहे - भगवती