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परिशिष्ट ]
१५. बरिसस हो— सो वर्षों में आज्ञा को टाल दिया है ऐसी कुसुमवा
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कुकलत्तु - खोटी स्त्री । ओसारिय- पेसणु - जिसने कुसुम वर्षा वर्षा वस्तावास ।
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चौथा सगँ
१. परिणेपिणु-परिणय कर हमकारियई- बुलाया । परमाइरिङ- परम आचार्यं । जिटिव - विद्यार्थी । घरबलिउ घर से निकाला हुआ। वणव्वमहणिवारण दानवों के दुमदेह का निवारण करनेवाले । सिम्खड - शिक्षित, शिक्षा दी। बत्त-वार्ता | विय - विवृत, कंपित
२. परवे—ि घेर लिया। सीसत्तणरवखही - शिष्यत्व रूपी वृक्ष का । परमहलु - परमफल । लद्वपसंसे— प्रशंसा प्राप्त करनेवाले ।
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२. खंडल मंडल यर मिठु – इन्द्र के नगर के समान । श्रासत्तु --- अलवित: कहा । मुविहसिए - मुद्रा से विभूषित ।
४. कलियारउ — कलह करने वाला। सत्बई - शास्त्रों को जबूदहेमृत्युच्छलिय हाथ उठा दिया।
५. उदधे घेरा डालकर या आक्रमण कर । चादण्णलाइ चातुर्वर्ण्यफलानि चार वर्णों के फल वोसरह - विस्मरति, मूलता है। ससपडिवण्णी - स्वसृ प्रतिवर्णा, अपनी बहिन के समान । गुरुदविष्वण्ण — गुरु-दक्षिणा ।
. तिष्णाणधरु – विज्ञान के धारी। गंभीर भए – गम्भीरता से । षोरमए-यं से ।
परिय-चर्या के द्वारा। धू ध्रुवं ७. गग्गर-सर गद्गद स्वर पउमवइ- अंगण --- पद्मावती के पुत्र
निश्चय से । वणम्फइ – वनस्पति । वणमवें- बनगेन्द्र के द्वारा । ( कंस ) ने । ८. सोहल - शोभाकर सुखकर या सुतवत् ( सुहल्ल सोहल ) । कलमलउ बेचनी । इयहं दयिता के । सल्लिम – पीडित । अन्यत्थियउ – अभ्यर्थित |
६. रयाजलि – जिसने अंजली बना रखी है। थोत्तुगादि- रतोत्र में जिसकी वा निकल रही है ऐसा | पहरे --- पतिगृह में ।
१०. धणणदणजोवणइतियहं धन, पुत्र और यौवनवाली स्त्रियों का उयह — उदर । जिगर - कहिय जिनवर के द्वारा कही गई ।
११. अल्लविय -- अर्पित कर दिया । माए- आदरणीये । महराज - मेरा । मत्याल जिह मस्तकशूल के समान ।
-- तद में ।
१२. नारायण चलणंगुट्टहब - नारायण के अंगूठों से आहत होकर कयत्यकिय—कृतार्थ
किया ।
१४. वामयरंगु - रसायण - वामेतर ( दाएँ) पैर के अंगूठे के रसायन से ।
पाँचवाँ स
१. reey - दिखने पर । रणंगणकखए युद्ध के प्रांगण की आकांक्षा से । विरह--- वियति देर करती है। रिट्ठकंतु-अरिष्टकंक, अरिष्ट कौला । अवइष्ण अवतीर्ण होने पर