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[सयंभूएवकिउ रिट्ठणेमिचरिउ ३. पडिच्छा---प्रतीक्षा करती है 1 सम्वहो चंगज-सबसे अच्छा है। सम्बाहरणविहूसियअंगर—सभी प्रकारों के गहनों से विभूषित शरीर । चिरचंदायणि-चिष्णहो-चिर चादनी के चिह्न वाले, चन्द्रमा के। ___४. आदत्तमहापडिवो-महाप्रतिवन्य प्राप्त करनेवाले । सण्णिय—संकेत किया । उद्दालहो --- छीन लो । रयणाई संभवति महिवालहो- . रत्न महीपाल के ही सम्भव होते हैं। यमपहेयमपथ पर । वप्पभडकलमहर्ण- दर्प से उद्धतों को मदित करनेवाले। रणरहसणुररएं--- युद्ध के हर्ष और अनुराम से।
५, परिणिउ-परिणीत । वश्वस-महिससिंगु--यम के भैसे का सींग । उद्धकधणिबहुऊर्ध्व धड़ों का समूह । दापुतालह-दर्प से उद्धृत ।
६. धूलिवाउ-धूसिराई--धूलि और हवा से घूसरित। आव होह-जज्जराई-आयुध ओघ (समूह) से जर्जर। सोणियंब रेल्लियाई-थोणित-अम्ब (रक्त-जल) से प्रवाहित । णित-अंतनोमलाई—जिनकी आंतें और शेखर ले जाए गये हैं, ऐसे सैन्य । विवा-विपक्ष में। सवरखे-स्वपक्ष में।
७. चड्डिय-प्रवलेोहिं—जिनका अवलेप (अहंकार) बढ़ रहा है। अखंधिय-बग्गेहिजिन्होंने वल्गा (लगाम) खींच रस्त्री है । आसवार—अश्वारोही। आयषत्त-आतपत्र, छत्र।
८. पउंडे-पौण्ड ने। षणु हत्थे--जिसके हाथों में धनुष है ! संघ-संघान करता है। णायवास-नागपाश । णिय सत्तुष्पत्तीगहो—अपना शत्रु उत्पन्न होने के कारण दीन हुए का। लवखणहोणहो-लक्षणों से रहित का।
६. प्रसरालउ-लगातार । अजस्रतर अअसर अर असरार अससल । "कैसव कहि कहि कृकिए न सोइए असरार"-कबीर । 'र' का 'ल' में अभेद होता है । कमवहे-क्रम पथ में, पैरों के रास्ते में।
१०. पेक्खयलोएं—प्रेक्षकलोक के द्वारा। णराहिषसत्ते-नराधिप के सत्व द्वारा अक्ससे -अक्षाशभाव से। पिहिविपरिवाले—पृथ्वीपाल ने । समरमरोड्डियखंघहो--जिसके कंधे युद्ध के भार से उठे हुए हैं।
११. स्तवक्कु-दंतवक । मुन्छपरागिर-मूछी को प्राप्त हुआ। मरि-रक्खिय जोयजमृत्यु से जिसने अपने जीवन की रक्षा की है। ससस्लु-शल्य सहित । ओणुल्ल उ--लुढ़क गया । परप्पद-प्रभवति, समर्थ होता है। जरीनश्णु-जननी का पुत्र । विहिगारज-धृतिकारक, धर्य दिलाने वाला । महाएउ-मेरा।
१२. दिण्ण आसि—दत्तं आसीत्, दिया हुआ था। छापाभंगु–कान्तिभंग । सामियाल-अबचितए-स्वामीश्रेष्य के अपचिन्ता करने पर।
१३. सुहद्दारवि-थणंषय-सुभद्रादेवी के पुत्र । भागालाणखंभ म मयगल—मानो, ऐसा मदमाता गज जिसने आलानस्तंभ उखाड़ दिया है। सासयएरवर-गमणमणगिय--दोनों मोम नगर की इच्छा रखनेवाले हैं।
१४. सुहवंगरहपहाणे--सुभद्रा के सबसे बड़े बेटे समुद्रविजय ने वैशाख स्थान से तीर मारा। दुहंड-द्वि खंड । पटवा- प्रेषित करता है। चिण्णइ---छिन्न-भिन्न कर देता है। बोहउ-उपस्थित हुआ।