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परिशिष्ट ]
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मत्स्यों और कछुओं से व्याप्त । मत्तत्थि टोहियाई - मतवाले हाथियों से प्रकम्पित । भी-तरंगभंगुराई- भय की लहरों से भंगुर मारुष्पवेबियाई दवाओं से प्रकम्पित । सुर-रासिबोहिमाई - सूर्य की किरणों के लिए बोहित (नाव) के समान | अहिणववासारितुहि-अभिनव वर्षा ऋतु में
३. कर- पुक्कर- रिचुंबिय पयंगु – हाथ की तरह सूंड से जिसने सूर्य को चूम लिया है (करपुष्करपरिचुंबित पतंग) दळतोसारिय-सुरग इंदु - दृढ़ दन्तोत्सारित सुरगजेन्द्र, जिसने अपने मजबूत दाँतों से ऐरावत को हटा दिया है । उद्धिरसणभीसणवार -- पराभव करनेवाला और भीषण रूप धारण करनेवाला साहारण- साधारण जाति का गजेन्द्र सो आर वह आरण, मारण्यक अर्थात् जंगली हाथी ।
४. जोह - घोढा । चवचयति कहता है । परिअसे- परिरमण, आलिंगन में ।
५. कुल-पीछे लगी। परिलिज - प्रतिस्खलित हो गया। खंडसरेण-क्षणान्तर में। क्कु पहुँचा। इंदिणु इन्द्रियों के वर्ष का दमन करने वाले । -
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- अन्त ।
६. खेड - खेद भूमि भूमिदेव ब्राह्मण। बिज पर – द्विजवर पंडरिय-गेहू-पंडरित गृह, भयखघर 1 चंप - चम्पानगरी। णिक्षम रिद्धिपत्त - निरुपम ऋद्धिपात्र । भूगोयर सय – भूगोचरशतानि सेकड़ों मनुष्य । मरट्ट - अहंकार |
७. कोइ अभिवाद्य
ढोक्तिनि उपस्थित की गयीं । यल्लक्ष्य- -वल्लकी, बीणा । तंविज्जुशिरा कराग और पभ तीर्थकर चलखग - बहुलपक्ष नभ, कृष्ण पक्ष का आकाश । संवतार - मन्द है तारे जिसमें (आकाश), जिसके तार (स्वर) मन्द हैं. ( वीणा ) ।
८. कुसुमाउहसरे हि — कामदेव के सरों से । जीवग्गगुत्तिए - जीवन को लेनेवाले कठघरेथें । तरुणोयणघणमवणेण-तरुणीजनों के स्तनों के मर्दन द्वारा फरगुणणंबोसर - फाल्गुन- नन्दीश्वर । सिरिवासुपूज्नजि-जत्त – श्रीवासुपूज्य जिन की यात्रा |
2. लक्ष्णजला ऊरिय विसोह-लावण्य जल से आपूरित दिशाओं का समूह। कसबें कौ के साथ। दुहिय - दुखिता । पूएं सूतेन सूत के द्वारा। शायद -- ध्यायति, ध्यान करता है ।
१०. मउम्मत - मदोन्मत्त | तिलोयग्गामी – त्रिलोक के अग्रभाग पर चलनेवाले । करेणु — हथिनी सहित ।
११. कुमारकएण-- कुमारकृतेन कुमार के लिए पासेअ - प्रस्वेद । दाहिणि सुरहि मन्दुदक्षिण सुरभित मन्द (पवन) । माए – आदरणीये । सुसुत्त - सुख से सोते हुए ।
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तीसरा सगं
१. कयि आकर्षित किया। याणहो घुमकी- स्थान से चूकी हुई। साय- विट्ठीनतक्षकगीष की दृष्टि के रामान । जियसामिणि अणुतग्गी-अपनी स्वामिनी के पीछे लगी हुई ।
२. कंषण मंचन – स्वर्णमंच से मदान्ध । धयरदुषि-- धूतराष्ट्र भी । करिणि चोपकरणी (हथिनी ) प्रेरित की। पडत-नगाड़ावावकों । सवर्णेवियहं श्रवणेन्द्रियों को ।