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________________ १६२] [सयंभूएबकिउ रिट्ठणेमिचरित उग्र। भोसियकंघहो—भार से ऊँचे कन्धे वाले। रयाणिहाणाबद्ध-समियो-आधे-आधे रत्नों और खजानों से समृद्ध । भणुरमाणी-समान । ६. द्विग्रहो—स्थितस्य, उद्यान में बैठे हुए गंधमायन के। बरिसावियपरममोक्खपहहोजिन्होंने परममोक्ष पथ को प्रदर्शित किया है। णियभवंतर---अपने जन्मान्तरों को। णिपणामुम्पत्ति परंपरष्च-अपने स्थान उत्पत्ति और परम्परा को। पर पहंतु घरे-नरक में पड़ते हुए (मुझे बचाओ। ७. विक्खंकिय--दीक्षांत किया। महुराहिउ-मथुराधिप । लत्ता–अलक्तक । खिजाइ --खिद्यते । पइंधणई-परिधान । दुखलढोर इन-दुर्बल ढोरों के समान । धदल मे ढोर का विकारा हुआ । घाउल घोल धोर> ढोर । ८. उपाय-(उप--याच)-मनौती । पसेइयज-प्रस्वेदित। चच्चर- वत्सर, प्रबूतरा । णिभरणेह-णिबंधविसु . -स्नेह निर्भर निबन्धचित्त । ६. कुवारें-'पाइयसहमहण्णव' कोश में 'कूव' देशी शब्द है जिसका अर्थ है..-घुराई हुई चीज की खोज में जाना। 'वार' अपभ्रंश काव्यों का विशिष्ट पारिभाषिक शब्द है । स्व० डॉ० पी० एल० वैद्य के अनुसार 'फवार' का पर्याय पूवार है। पुरुपदन्त के महापुराण में इसका प्रयोग है णरणाहहु कय साहुद्वारें। ता पयगय सयल वि कवारें। किसी अत्याचार या कष्ट के निवारण के लिए प्रजा सामूहिक रूप में ताजा के पास करुण पुकार के साथ निवेदन करने के लिए जाली है उसे ऋवार बहते हैं। उम्मडियई-उपशोभित । परउल-उत्तियाई-दूसरे कुल की पुत्रियां। १०. कोक्किन--पुकारा । अलियसणेहे--अलीक स्नेह (भूरे स्नेह से (उच्चोलिहि-गोद में । पच्छण्ण-पउत्तिहि--प्रच्छन्न उक्तियों के द्वारा । संपइ - संप्रति; इस समय । फेलोहरए.-- फेलिगृह में । वायागुत्तिहि-वचनगुप्तियों के द्वारा । वसृएव-गइंदु-वसुदेव गजेन्द्र । विणयंफुसेग-विनयरूपी अंकुश द्वारा। ११. समतहणु...समालभन, विलेपन । १२. मसाणय-रुमशान । गाइयं-सात। महोगहोवसेवियं.....महीमह सेवित, ब्राह्मणों द्वारा सेवित। चियग्गिजालमालिय–विताग्नि की उदालमालाओं से युक्त । णिसायरेक्क-कवियंनिशाचरों के समूह से आक्रान्त। १३. सत्तग्रिहे--सप्ताचि के, आग के । बल्लियई-डाल दिये (क्षिप्तामि) । साहरणईसाभरणानि, भूषण सहित । के कण्णउ-दो कन्याएं। दूसरा सर्ग १. परणेपिण--परिणय, विवाह पार । रण्णयं-- अरण्य, वन । चंदाइच्च-मंडल - चन्द्रादित्यमण्डलम् । सलिलायत्तु- सलिलावलं । गयणाणंबयर-नयनामन्दकर, नेत्रों को आनन्द देने वाला। २. सत्यविच्युरलाई-प्राणि समूह से पूरित । सत्य–स्वत्व । मच्छ-कच्छ-विट्टलाई
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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