SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [१४७ बारहमो सग्गो] कहासणे उबठ्ठ सुरंतउ। थंभिउतेण घरमि वस्त्रंतर ॥ पत्ता - सोसिड सलिलु असेसु हरि-मोयम-सहासाई दिण्णाई। तेहि मि बालु ण अग्बाइ सूयार-सयई णिविण ॥१६॥ तहि अवसरि आयज हक्कारिउ। सम्हहं सिर-भद्दावण-बार ॥ सो चंडिल्तु कुमार तस्जिद। मुंडिय जणु सिरेण विसरिजन। मायर' कुट्टगि-णिबाहु सतूरउ । माया-गयवरेण किट चूरउ ।। अवर महत्तर अट्ट पराश्य । ताउ बंधवि भह घाइय॥ आयउ गप-कुमार विभारिउ । मायासीहें कहव क मारिउ ॥ सावलेउ धसुएउ पराइट। मायामेसें कहति ण धाइउ ॥ आयऊ जरफुमार रिज-भषु । ताम वारे थिउ मायबंभगु ॥ सो पदसाय व वैध कुमारहो। मोक्ख जेम चउगह-संसारहो ॥ धत्ता-भण उहि भणंत चरणे धरेग्यणु कढइ । ____णवर पिरारिउ पाउ रिण जिह सकलंतक वह ॥१२॥ बैठ गया, उसने जलती हुई घर की आग स्तंभित कर दी (रोक दी)। घसा-उसने सारा पाची सोख डाला, उसे कृष्ण के हजारों लड्डू किये गये, परन्तु बालक उनसे सन्तुष्ट नहीं हुआ। सैकड़ों रसोइये खिन्न हो उठे ॥११॥ ___ उस अवसर पर हलकारा आया कि तुम्हारे सिर के मुण्डन कराने का अवसर है। उस नाई को कुमार ने डाँट दिया। उसे सिर से मुंडकर छोड़ दिया । सूर्य के साथ दासी समूह आया। मायावी हाथी ने उन्हें चूर-चूर कर दिया । और भी दूसरी बड़ी-बड़ी वासियाँ आयीं। उन्हें बोधकर उस भद्र ने आहत कर दिया । विस्मयजनक गज का बच्चा (कलम) माया, परन्तु मायावी सिंह ने उसे किसी प्रकार मारा भर नहीं । अहंकार के साथ वसुदेव आये, परन्तु मायावी मेष मे उन्हें किसी प्रकार आहत भर नहीं किया। शत्रुओं को रोंधनेवाला जरत्कुमार आया, इतने में द्वार पर एक मायावी ब्राह्मण खड़ा हो गया। वह कुमार को भीतर नहीं घुसने देता, उसी प्रकार जिस प्रकार चार गतिवाला संसार मोक्ष को प्रसार नहीं देता। यता-'हे ब्राह्मण; उठो' कहते हुए उसे पर से पकड़कर जरत्कुमार खींचता है, परन्तु वह पौव कर्ष की तरह, केवल कला प्रति कला मढ़ता जाता है ॥१२॥
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy