SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 191
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४८] [सयंभूएवकए रिटुमिचरिए आयज कामवाल हक्कारित । कोका गिरि-गोववणधारउ॥ तहि अवसरि विजापरिवाल । घिउ फारायगवेसे वाला। गड़ सविलक्ष णित्तिविहलपर । एल्यु जे तहि ते मि वे भार्याह । मइ वेयारहि पाएवि माहि ।। एम अणदणु कोवे बहाविर। मच्छङ्घ गुरुकु कोधि मायाविज ॥ तरई वेविले अस्पते। संघ वि अंधेवि परत पयत्ते ।। शाम संणजम जायत्र-साहणु। नामाकरण माहिम नाह ह्य पडपडह पसारिय कलयलु । तब लच्छि-लंछिय-बस्छस्थल ।। धत्ता-प्पिणि लेवि वासु थिउ गाहाले भडकडमरण । कहङ्क महारिसि ताहें इह माए तुहारउ पंरतु ।।१३॥ तो पविय बेषि थग मायहें। कंतु वेह पोसारण वायहे ॥ हरसंसयहो उरत्यलु तिम्मिउ । बाल णिय-बलसणु निम्मिउ ।। लघु पमोहरे गावं घगडा। ताखणे णवबुधाण भयरबार । बुलाया गया कामदेव आया । गोवर्धनपर्वत उठानेकाले उसे पुकारते हैं। इस अवसर पर विस का परिपालन करनेवाला बालक नारायण के वेश में बैठ गया । बलराम को लज्जित घूरकर चला गया। जिस प्रकार यहाँ उसी प्रकार वहाँ भी मतिभ्रम पैदा करनेवासी माया से दो भागों में स्थित होकर उसने इस प्रकार जनार्दन को आग-बबूबा कर दिया । लगता है कोई मायावी भा गया है। सूर्यो को बजाकर शीघ्र उसे अशात्रभाव से पकड़ लो। सेंधकर बांधकर प्रपालपूर्वक पकड़ लो, जब तक मादवसेना तैयार होती है। हथियार उठा लिये श्ये, कल-कल प्रसारित कर दिया गया, तब तक जिसका वक्ष लक्ष्मी से अंकित है, पत्ता-ऐसा मोद्धाओं को चकनाचूर करनेवाला कामदेव बालक प्रद्युम्न सक्मिणी को मेकर आकाश में स्थित हो गया । तब महामुनि नारद उस (रुक्मिणी ) से कहते हैं--"हे मादरणीये, यह तुम्हारा पुत्र है।" ॥१३॥ तब माँ के दोनों स्तन भर आए, वाणी निकालने के लिए कण्ठ देती है। हर्ष के आसुओं से उसका उरस्थल गीला हो गया । बालक ने अपना बचपन निर्मित किया, और दूधपीवे. बच्चे की तरह पयोधरों से लग गया। उसी क्षण वह नवयुवक कामदेव बन गया। तपस्वी (नारद)
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy