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बारहम गो]
तं णिसुणेवि णउल सहदेव ह । परिचय पाच व लेह ॥ रण आठ धोरु जियवालें । गरु उत्थरिज महालरजालें ॥ far वम्मण मोर घाइउ । सो वि परजिड कवि ण घाइउ ।। धम्मसु आयाम जाह कोहि कह महारिति तावहि ॥ बहुरुप्पिणि-बणु नगरद्धछ । तुम्हे कलह काई पारढछ ।
एम भणेवि बेवि गणवें ।
गय वारवइ पत्त सिद्धे ॥
ent - पेक्खिवि मयण विमाणु हरियंत्रण चंवण- विउ ।
धुकरोहिणं ममहणपूरेण पश्वि ॥ ६॥ णार हे सबिमाणु परिद्विज । भोउन! बाराव पट्ठ मयरउ । मायाकड-भाउ भारत ॥
एक्कुवि मिम्मि दुल घोल । तिसिह बासु समवतु विथोउ ॥ सो मोकलिउ र तुरंत । वश्वलंतु सलिलं सोतु ॥ उबवणु भाणुकुमार केरउ
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में आ पहुंचा हूँ मुझे कर दो और रास्ते से जाओ, और नहीं तो मुझसे युद्ध करो।" यह सुनकर, जिनका प्रताप और अहंकार बढ़ रहा है ऐसे नकुल और सहदेव ने भयंकर युद्ध शुरू किया, लेकिन बालक के द्वारा जीत लिया गया। तब अर्जुन बाणजाल के साथ उछला। वह भी कामदेव के द्वारा जीत लिया गया। भीम दौड़ा, वह भी पराजित हुआ, किसी प्रकार वह मारा भर नहीं गया। धर्मपुत्र ( युधिष्ठिर) सचेष्ट हुए ही थे कि इतने में महामुनि ने कुन्ती से कहा"यह रुक्मिणी का पुत्र कामदेव है। तुम लोगों युद्ध क्यों शुरू किया ।" यह कहते ही वे दोनों ( नारद और कामदेव ) आकाश के मार्ग से गये, और आधे पल में द्वारावती जा पहुँचे। - कामदेव का विमान और चन्दन से चर्चित हरि के पुत्र को देखकर श्रीकृष्ण का नगर ध्वजचिह्नों की उठी हुई माहों के बहाने मानो नाच रहा था ||
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नारद आकाश में विमान सहित स्थित हो गये, मानो आकाश में दूसरा सूर्य उदिस हुआ हो । कामदेव ने द्वारावती में प्रवेश किया। उसने मायाषी कपटभाव प्रारम्भ किया । उसने एक दुर्बल घोड़ा बनाया, प्यासा कि जिसे समुद्र भी थोड़ा या । उसने उस घोड़े को तुरन्त छोड़ा, तु खाता हुआ और पानी सोखता हुआ । भानुकुमार के जनों के मन और नेत्रों को आनन्द देने वाले