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________________ १४४] [सयंभूएवकए रिट्ठणेमिचरिए घत्ता-पुच्छिउ कसमस रेण कहि ताय-साय कि सेर । दोसा संशवारउ उहु संघसंत कहो केरउ ।।७। तो यम-विणय-परवकम-शुत्तहो । कहइ महारिसि गम्पिणिकुत्तहो । एट सो चबके उ-कमलाउछु । पंकय-दल करन्छि-पंकय-मुह ।। पंचवजेट सुट्ट विझायज । षम्मपत्त धम्मुच्छधे जायज । हीसह विधि जाप्त पंचाणषु । ऍछ सो भीम भीम-भवभंजणु । जसु सोवण्णमा पर पार ऍह सो अज्जुणु पवरचण्डरु ।। ओय जमल थिय अग्गिमधे । रिज णासंति जाहं रणु गंधे ।। गरणंदहे णंबहे उप्पण्णी। कंघणमाल-कला-संपुग्णो । सच्छहाम तणयही बलसारहो। दिग्जह लगी भाणुकुमारहो । पत्ता-तं णिसूणेवि पन्जण्ण तरबेल्लियाउलयमगए । ससर-सरासण-कृत्यु षाणुगक होवि थिउ अग्गए ||८|| ससर सरासण इत्यु पक्किा । हणारायण केरउ सक्किउ ।। सक्कषि महपहण पघद्रह। णं तो मई समाण अभिट्टा ।। पत्ता-कामदेव ने पूछा- "हे ताल, हे तात, बताइए चुप क्यों है ? बह जातामा स्कन्धावार किसका है?" ||७|| तब वय, विनय और पराक्रम से युक्त रुक्मिणीपुत्र से महामुनि कहते है, "जिमके ध्वज में चन्द्रकेतु है ऐसे कमलायुध, कमलदल के रामान कर, आँखों और कमलमुखबाले पाण्डवों में सबसे बड़े अत्यन्त विस्यात यह धर्मपुत्र (युधिष्टिर) धर्म-उत्सव में उत्पन्न हुए थे। जिसके चिह्न में सिंह है ऐसा बड़े-बड़े योद्धाओं का मंजक यह भीम है। जिसके स्वर्ण-महाध्वज में वानर है, बह यह प्रवर धनुर्धारी अर्जुन है। स्कन्धावार के अग्रिमभाग में वे नकुल और सहदेव स्थित हैं, जिनको गन्ध से युद्ध में शत्रु नाश को प्राप्त होते हैं। मनुष्यों को मानन्द देनेवाली नन्दा से उत्पन्न स्वर्णमाला की कला की तरह सम्पूर्ण (उदधिकुमारी) बल में श्रेष्ठ सत्यभामा के पुत्र (भानुकुमार) को दी जाने लगी है। घत्ता-यह सुनकर प्रपम्नकुमार वृक्षों और लताओं से आच्छादित रास्ते में बनुष और वाग हाथ में लेकर धनुर्धारी के रूप में स्थित हो गया ।।। यह बोला, "तीर और धनुष जिसके हाथ में हैं ऐसा मैं नारायण का कर उगाहनेवाले के रूप
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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