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________________ बारहमो सग्गो] यामहेण मृयालेचि मुक्को ।। जउ गीस याद परसपणा (उ)। बासु णिरारिउ गुण-णियाणा (1) ॥ पत्ता-जुज्ज होवि पइद्छु पंडिलेण संवि वह हाथिय । पुण वरयत्त छलेग अवहरिवि रिमाणि चढाविय ॥६॥ तहि अवसरे संगनाइ साहणु । रहकर तुरय महागय-वाहणु ॥ . विण तूर विडिय कलपल । वणु दप्पहरण पहरण कलयलु ।। कम्पिगि-सगएं चित्तम सहावें। मोहिल बलु पात्ति-पहावें॥ जो-जो हुक्का तं-तं चप्पेवि । अपहिमाल कुरुष इहे समप्पेथि ।। रिसिं उच्चइ बह रुप्पिगिणवणु । काई अकारणे किउ करमणु ।। एम भणेवि वधि गय तेत्तहे। पंडवराअ-पहाणउ जेल हे ।। रहबर-तुरम-गइंद-विमाणेहिं । घय छत्तहि अणेय-पमाणेहि ।। दप्पग-वहि वृध्ययन सेसहि । प्राइहब मंगल-कलस-विवसहि ॥ कामदेव ने उसे मूक बनाकर छोड़ दिया। उसकी वाणी नहीं निकलती, वह संज्ञा से बोलती है। बालक गुणों की अत्यन्त प्रशंसा करता है। पत्ता-बौना होकर प्रविष्ट हुए भाई ने बहू को ले जाकर नहलाया। फिर वर के छल से उपहरण कर उसे विमान में चढ़ा लिया ।।६।। उस अवसर पर जिसमें रथवर, तुरग और महागजवाहन है, ऐसी सेना तैयार होती है । . नगाड़े बजा दिये गये। फलकल बढ़ने लगा। दानवों के दर्प का हरण करनेवाली, शास्त्रों की आवाज होने लगी। विषम स्वभाववाले कनिमणी के पुत्र ने प्राप्ति के प्रभाव से सेना को मोहित कर लिया। जो जो उसके पास पहुंचता है उसे उसे चौपकर उदधिमाल कुरुपति को सौंपता है मुनि ने कहा-वह रुक्मिणी का बेटा है। तुमने अकारण मारकार क्यों की?" यह कहकर वे दोनों यहाँ गये जहां पाण्डवराजाओं का प्रमुख था । रथवर, तुरग और गजेन्द्र और विमानों, ध्वज-छत्रों, अनेक प्रकार के दर्पण, दही, दूर्वा, अक्षत और शेष, अत्यन्स उत्सवमंगल कलश विशेषों के साथ।
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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