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________________ १४२ [ सयंभूएवकए रिटुणेमिचरिए सम्बई भोयण आगरिसाई। बंभणाण अवसपणाई वरिसई॥ वहगुण वणिहिं अग्धु बावद। गं तो बहरूहि कड्ढावा॥ सो पर णाहिं जो प खलियारिउ । पट्टणि एम करंतु दुबालिउ ॥ घसा-गउ वज्जोहण जेत्थु, फरे माहलिगु टोइजइ। तेण वि पुगु सयधार पिपमाणुस जिह जोइम्जा ॥५॥ जसु-जसु डोय कुरुपरमेसर । सो-सो भणइ देव एउ विसहर ॥ भंडागारिएण ण समिच्छउ । देव प भालिगु ऍउ विच्छिन । पुच्छिन्तु वियाहि अपइ । वक्षु पंडिउ पयंडु पाउ कंपह।। हर पीयंबरजणणे जायज । करणस्थिउ तुम्हहं पर आयउ ।। परिरक्खंति अन्जु जद देव चि । मई परिणेची अवसे लेय वि ॥ तहि अवसरे दुजोहन-राणो । जहहिमाल णामेण पहाणी। पेसिय ताए महतरि ढुक्की। .- .... - - है। बाबड़ी के लम्बे द्वारों को अवरुद्ध करता है। युवतियों के द्वारा जल ग्रहण नहीं किया जा सकता । उसके द्वारा सारा भोजन खींच लिया गया। श्राह्मण लोग अप्रसन्न दिखाई देते हैं। भिक्षुकों के द्वारा दसगुनी पूजा सामग्री बढ़वा देता है और नहीं तो, अनेक रूपों में निकाल लेता है। वहीं कोई ऐसा आदमी नहीं था जिसे तंग न दिया गया हो। नगर में इस प्रकार ऊधम करता हुआ, - घसा-बह वहाँ गया, जहाँ दुर्योधन था । उसके हाथ में बिजौरा नीबू था । उसने भी उसे सौ बार प्रिय मानुस के समान देखा ।।५।। बह कुरु परमेश्वर जिस-जिसको नीबू देता है वह वह कहता, "हे देव, यह विषपर है।" भण्डारी ने भी उसे नहीं चाहा, वह कहता है- "हे देव, यह नींबू नहीं है।" विद्वानों द्वारा पूछे जाने पर वह बोलता है कि "मैं वटु पण्डित हूं और प्रचण्ड हूं, में कांपता नहीं। मैं पीताम्बर पिता से उत्पन्न हुआ हूं और अन्यार्थी होकर तुम्हारे घर आया हूँ। यदि देव भी आज रक्षा करते हैं, तब भी में अवश्य ही कन्या को लेकर रहूंगा।" उस अवसर पर दुर्योधन की उदधिमाल नाम की प्रधान रानी थी। उसके द्वारा भेजी गयी महत्तरी (उदधिकुमारी) पहुंची।
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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