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________________ १४.] [सम्भूएवकए रिठ्ठणेमिचरिए कि परणिहि धिरणिहुं] अंगई कटरयाई । णउ-उ घण्णा कणिसुम्भश्या। फिर महि-घिहुरभार थिउ उच्छन । गन-उतर-आराम-समुच्चड़ ।। किह उत्पल्लिवि उहि परिष्टुउ [अहिदुर] । णज-मउ परिहावलज परिटिज ॥ किह हिमवतु महंतु महोहरू। उ-पउ पुरपायार मगोहर ॥ कि हिमगिरि-सिहरई हिम] धवलई । पउ-णउ मंदिराई छुहलवसई ॥ किह मेहउलई महियाल-पत्ता। ण उ-गउ गयविदई मयमत्तः। किह तरंग मयरहरहो केरा। ज-भाउ अतुल-पर। ॥ घत्ता-किह थलभिसिणी भावद विसिय ई सेयसयवत्तई। पउ-णजससिषयलाई आपईवज्जोहण-छत्तई १३॥ इत्यु अराह राह-रग-रोहण । णिषसइ कुश्व राजगुञोहणु ।। "क्या ये धरती के रोमांचित अंग हैं ?" "नहीं नहीं, उटे हुए अग्रभाग वाले धान्य हैं।" "क्या यह धरती का उठा हुआ केश-समूह है ?" "नहीं नहीं, वृक्षों उद्यानों का समूह है।" "क्या यह समुद्र उछलकर बैठ गया है ?" नहीं नहीं, यह परिखावलय है।" "क्या यह महान हिमगिरि है।" नहीं नहीं, यह सुन्दर नगर-परकोटा है।" "क्या ये हिमगिरि के हिमघवल शिस्त्र र हैं ?" "नहीं नहीं, मुषा(चूना )से घलित मन्दिर हैं।" "क्या ये मेघकुल धरतीतल पर आ गये हैं ?" नहीं नहीं, ये मदमत्त गजसमूह है।" "क्या ये समुद्र की तरंग हैं?" "नहीं नहीं, यह कुरु के तुरंगों की परम्परा है।'' पत्ता-"क्या यह स्थल-कमलिनी शोभित है या श्वेत कमल खिले हुए हैं ?" "नहीं नहीं, ये चन्द्रमा के समान धवल दुर्योधन के छत्र हैं ॥३॥ यहाँ पर शत्रु-राजाओं से युद्ध करनेवाला कुरुराज दुर्योधन निवास करता है--
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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