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________________ धारहमो सग्गों] घत्ता-~-एम भणेवि कुमार संचलिउ विम्मापाणे । दोसइ णहयले जंत में रावणु पुष्फविमाणे ॥१॥ चलिउ महारिसि समउ कुमार। णं मयसंछणु सहुं सवितारें॥ घिण्णिवि तेजवंत उबसोहिय। गंणहभवणे पईचा बोहिय ।। पट्टणु ताव दिठ्ठ कुरुणाहहों। कलिकालहो कलुस सणाहहो । णियडिज सग्गखंडणं सुवि । थिउ षणयबाम विच्छुट्टिनि ।। णा जगणरु अावासिज । सुदर सुरवरपुरहो पासिउ ॥ हिं पायार णहंगण लंधा। पुरुउचएस जेम दुल्लंघा॥ जहिं सुंदर-मंदिरइं अप्लेयई। चंदाइच-समप्पाह-तेयई॥ केत्ति बार-बार बोरिलज्जाइ । हस्थिणायउर कहो उमिज्जा ।। पत्ता-तहि पर एत्तिउ दोसु हरिवंतमहहह-कोहण । छुम्मत दुण्णयवंतु जं वसई छुट खोहण ॥२॥ णयर णिएंवि णियरहसु ण रक्खह । पुच्छट् बालु महारिसि अश्खइ ॥ पत्ता- जिसके हाथ में विद्या है ऐसा कुमार इस प्रकार कहकर चला । आकाश में जाते हुए वह ऐसा मालूम होता है मानो पुष्पक विमान में राषण हो ।।१।। कुमार के साथ महामुनि भी चले, मानो सूर्य के साथ चन्द्रमा हो । दोनों ही तेजस्वी और शोभित थे, मानो आकाश के भवन में प्रदीप आलोकित कर दिये गये हों। इतने में कलिकाल, कलंक से युक्त कुरुराजदुर्योधन) का नगर दिखाई दिया, मानो स्वर्णझण्ट ही टूटकर गिर पड़ा हो, मानो अलग हुआ कुबेर का घर हो, मानो कामदेव का नगर बस गया हो । सुन्दर सुरपुर के चारों ओर आकाश के आंगन को लाँघने वाला परकोटा था, जो गुरु के उपदेश की तरह दुर्लध्य था । जहाँ अनेक सुन्दर प्रासाद थे—जो सूर्य और चन्द्रमा के समान आभा और तेज वाले थे। बार-बार कितना कहा जाए, हस्तिनागपुर की किससे उपमा दी जाए? पत्ता-परन्तु एक दोष है कि जो उसमें हरिकुल रूपी महान सरोवर को क्षोभित करनेवाला, धुर्मद, दुनय वाला दुर्योधन निवास करता है ।।२।। ___ नगर को देखकर प्रद्युम्न अपना हर्ष नहीं रख पाता। बालक पूछता है और महामुनि कहते हैं
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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