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(२६) की अन्तेष्टि के बाद, वे माता-पिता (वसुदेव-देवकी) को बन्धन-मुक्त करते है और कहते है कि हम आपके पुत्र हैं, परन्तु बाल्य और किशोरावस्था के सुख नहीं दे सके । वे नाना उग्रसेन को यदुवंशियों का राजा बना देते हैं, क्योंकि ययाति के शाप के कारण यदुवंशी राज. सिंहासन पर नहीं बैठ सकते । वसुदेव दोनों का यज्ञोपवीत संस्कार कराते हैं । वहाँ से वे काश्यपगोत्रीय सान्दीपिनी मुनि के आश्रम में उज्जयिनी आते हैं। गुरुदक्षिणा के रूप में प्रभासक्षेत्र के समुद्र में डूबकर मरे हुए गुरुपुत्र को वे दोनों शंखासुर को मारकर यम के पास से ले आते हैं। विद्याध्ययन के पश्चात् वे मथुरापुरी लौट आते हैं। कृष्ण के अनुरोध पर उद्धव (वृष्णिवश के प्रमुख पुरुष) व्रज की यात्रा करसे हैं। यहाँ उनका सम्मान होता है । आगतस्वागत और कुशन-मंगल के बाद, उद्धव ब्रज का कण के प्रति अनुराग देखकर मानन्दमग्न हो जाते हैं। फिर वे मथुरा के सारे समाचार देकर बताते हैं कि श्रीकृष्ण शीघ्र व्रज में आयेंगे। दूसरे दिन नन्द के द्वार पर स्वर्गरथ देखकर गोपियां आशंकित हो उठती है। उन्हें उद्धध कृष्ण के समान दिखाई पड़ते हैं। उद्धव से उलाहने के स्वर में कहती हैं, "कृष्ण ने मां-बाप के समाचार के लिए आपको भेजा है, उन्हें गोकुल से क्या लेना-देना ? दूसरे से प्रेम सम्बन्ध का स्वांग स्वार्थवश होता है, वैसे ही जैसे कि भ्रमरों का फूलों से ।" इस प्रकार एक के बाद एक आरोप लगाती हुई वे यह भूल जाती हैं कि उन्हें किसके सामने क्या कहना चाहिए । वे आत्म-विस्मृत हो उठती हैं । एक गोपी को भ्रमर देखकर ऐसा लगता है कि जैसे प्रिय ने समझाने के लिए दूत भेजा हो । उस समय उसे मिलन-स्त्रीला की याद आ रही होती है । वह उस भ्रमर से कहती है
"तू कपटी का सखा है, इसलिए तू भी कपटी है। तू मेरे परों को मस छु। झूठे प्रणाम कर अनुनय-विनय मत कर । मेरी मौतों की मली गयी वनमाला सामनेटरी गोट पट जगा है । तू फूल से स्वयं प्रेम नहीं करता । यहाँ-वहां उड़ा करता है। जैसे तेरे स्वामी वैसा ही तू । उन्होंने तुझे व्यर्थ भेजा। तू काला वह काले। "वे लक्ष्मी के प्रति सहानुभूति दिखाती हैं जो कृष्ण की चिकनी बातों में आकर सेवा में लगी रहती हैं। "तुम जो उनकी ओर से चापलूसी कर रहे हो वह व्यर्थ है। घरबार विहीन हमारे सामने कष्ण का गुणगान किस काम का? तू यहाँ से जा, वे हमारे लिए पुराने हैं। सू मथुरावासिनियों के आगे उनका गुणगान कर । वे नयी हैं और उनकी लीलाओं से अपरिचित हैं। उन्होंने उनकी पीड़ा मिटा दी है, वे तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार करेंगी और मुंहमांगी वस्तुएँ देंगी।" वे स्वीकार करती हैं कि ऐसा कौन है जो उनके प्रति आकृष्ट न हो, परन्तु यथार्थत: वे उदात्त हैं तो दोनों पर उनकी कृपा होनी चाहिए । 'हे भ्रमर, तू मेरे पैर मत पड़ । सेरी दाल यहाँ नहीं गलेगी। ___ कृष्ण के पौराणिक कृत्यों की आलोचना करती हुई गोपियाँ कहती हैं कि काली वस्तु से प्रेम करना खतरनाक होता है। वह यह भी कहती हैं कि कृष्ण-कथा का बस का छोड़ना उनके लिए असंभव है। फिर भी तुम प्रिय के सना हो, हमें मनाने के लिए तुम्हें भेजा गया है, तुम हमारे लिए माननीय हो, जो चाहिए हो वह ले लो।" अन्त में बह आर्यपुत्र की कुशल-मंगल पूछती हैं। वे जानना चाहती हैं कि क्या कभी उनसे मिलने का अवसर आएगा?
उत्तर में उद्धव कहते हैं- "तुम्हारा जीवन सफल है। तुम पूज्य हो क्योंकि तुमने अन्य साधनों को छोड़कर प्रेमाभक्सि से प्रभु का साक्षात्कार किया है। स्वजनों की उपेक्षा कर तुम ने श्रीकृष्ण को पति रूप में वरण किया है। वियोग में तुमने प्रेमाभक्ति की उच्च भूमिका को प्राप्त कर लिया है। तुम्हारे लिए कृष्ण का यह सन्देश है : 'मैं सबका उपायान कारण हूँ, सब में