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भस्म कर देते हैं । यह पूर्वभव में सुदर्शन नामक विद्याधर या जो शाप के कारण अजग र योनि को प्राप्त हुआ था। वह श्रीकृष्ण की अनुज्ञा लेकर चला जाता है । एक बार श्रीकृष्ण और बल - राम गोगियों के साथ, पास के यन में स्वच्छन्द विहार करते हैं । कुबेर का अनुचर पांखचूड़ 'पक्ष' गोपियों का अपहरण करता है। दोनों भाई शालवृक्ष लेकर दौड़ते हैं। श्रीकृष्ण पीछा कर एक चूंसे में उसका सिर धड़ से अलग कर देते हैं । वह उसका चमकीला मणि लेकर आ जाते हैं और बलराम को वे देते हैं।
'युगलगीस' में गोपियों की वह प्रतिक्रिया व्यक्त है जो उस समय उनके मन में उत्पन्न होती है जब कृष्ण प्रतिदिन वन में गाय चराने जाते हैं। इनमें कृष्ण का सौन्दर्य, चेष्टाएँ, अलंकरण आदि बातें समाहित हैं। एक दिन कृष्ण के व्रज में प्रवेश करने के समय अरिष्ट दैत्य पाता है। कृष्ण उसका वध करते हैं । अरिष्टासुर के वध के बाद नारद कंस को वस्तुस्थिति बताते हैं। कंस ऋद्ध होकर बसुदेव को मार डालना चाहता है। नारद मना करते हैं। कंस वसुदेव और देवकी को बन्दीगृह में फिर से भिजवा देता है। यह केशी से वृन्दावन जाकर दोनों को मार डालने का आदेश देता है । मंचों और अखाड़ों का निर्माण होता है। कंस फष्ण को लाने के लिए यदुवंशी अक्रूर को भेजता है । अक्रूर धनुषयज्ञ का निमंत्रण लेकर जाते हैं । केशी दैत्य अश्व के रूप में आता है। श्रीकृष्ण उसे परास्त करते हैं। देवता फूल बरसाते हैं। नारद आकर श्रीकृष्ण की स्तुति करते हैं तथा भावी घटनाओं और वधों का पूर्व उल्लेख करते हैं । गोचारण के समय, वह भामासुर का वध करते हैं। अक्रूर ब्रज' की यात्रा करते हैं। नाना कल्पनाएं करते हुए वे माते हैं । बजभूमि में पहुंचकर वह रथ से उतरकर व्रज की धूलि में लोट जाते हैं। दोनों भाई उन्हें घर के भीतर ले जाते हैं । नन्दबाबा यह मुनादी करवा देते हैं कि कल वे मथुरा मेला देखने जाएंगे और राजा को गोरस देंगे। गोपियों पर इसकी गहरी प्रतिक्रिया होती है। अक्रूर को भला-बुरा कहती हैं। यमुना किनारे पहुंचकर अफर स्नान करते हैं, वे दोनों भाइयों को रथ पर छोड़ आये थे, परन्तु उन्हें जल में देखकर वह आश्चर्यचकित रह जाते हैं । जल में उनका विष्णु रूप प्रतिबिम्बित है । अक्रूर उनकी स्तुति करते हैं । बजवासी गोप और नन्द पहले से ही मथुरा के बाहर उपवन में ठहरे हुए हैं। कृष्ण और बलराम अक्रूर को मथुस भेज देते है और स्वयं वहाँ ठहर जाते हैं। अक्रूर कंस को कृष्ण के आने की सूचना देते हैं। कृष्ण के मथुरा में प्रवेश करने पर वहां की वनिताओं की प्रतिक्रिया। धोबी से कपड़े लूटते हुए, दर्जी से प्रसन्न होते हुए, सुदामा माली के घर जाते हैं। वह उनकी पूजा करता है। रास्ते में चमकी कुब्जा से मेंट होती है, जो चन्दन का पात्र लेकर जा रही भी । वह अंगभंग के साथ, अपने को समर्पित कर देती है । श्रीकृष्ण उसके अंगों को सीधा कर देते हैं । बह एक सुन्दर स्त्री बन जाती है । बह घर चलने का भाग्रह करती है। कृष्ण बाद में आने का आश्वासन देकर आगे बढ़ जाते हैं।
रंगशाला में धनुष चढ़ाकर और सेना को परास्त कर कृष्ण-बलराम आगे बढ़ते हैं। यह समाचार सुनकर कंस आग-बबूला हो जाता है । दूसरे दिन मल्लयुद्ध का आयोजन होता है जिसमें दोनों भाग लेते हैं । कुवलयपीड का उद्धार कर वह अखाड़े में मल्लों को पराजित करते हैं—कृष्ण चाणूर को और बलराम मुष्टिक को । कृष्ण कंस का काम तमाम कर देते हैं । कंस