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एयारहमो सग्गो]
उहणेण वि तह डाहोत्तरई। विण्णा गौमां अंबर णि मज्ने मेसनहीहरहे। दोषसमं विणिवायकरहे। वे वजिउ तेहि समप्पियर। तिहुअण-जण पमण-मणप्पियत । साहिउ वराह अवराहकर। ते विष्णु संखु तहो भीमसव ।। जिउ रवखस तेण वि बिग्ग गय।
समहारह सकघय अणिय भय ।। पत्ता-सरेण कविय-णिवासिएग मणि-किरण-सहास-भिग्णउ । विणि ण हंगण गामिबिउ पाउपड फुमारहो दिण्णच ॥७॥
भोवतार विष्फुरमागमणि देवाहं पि बुद्दम-वमिङ फणि तेण वि मरगयकर-विमरिय। डोइवाइ भुष-मुहिय-छुरिय ॥ धगु-ससस समंडलग्गु फरउ। कामंगुत्थलउ ससेह्रज ॥ विणिषारिय विवसयरायण।
वें कणयअणपायवेण॥ दिज्जति सुरासुर-अमर-करा। षणु-कउसुमु कसुमपंचसरा॥ लोशेवणि माकड तेण जिज। सम्बोसहि मायामउ महिउ ॥
ने भी उसे दहन से रहित सुवर्ण-वस्त्र दे दिये । उसे मेषमहीघर के भीतर ले जाया गया जो यज्ञ के समान निपात करनेवाला था ।
उन्होंने उसे दो बच्च दिये जो त्रिभुवन के जनों के नेत्रों के लिए प्रिय थे। उसने अपराध करनेवाले वराह को सिद्ध कर लिया। उसने उसे भीमस्वर करने वाला शंख दिया। उसने राक्षस को जीता । उसने भी हाथी दिया, तथा जो महारथ और कवच सहित था और भय उत्पन्न करनेवाला था।
घसा-कपित्य पर निवास करनेवाले देव ने मणि की हजारों किरणों से चमकती हुई, आकाशगामिनी दो पादुकाएँ कुमार को प्रदान की।।७।।
थोड़ी देर में, जिसका मणि चमक रहा है ऐसे देवों द्वारा भी दुर्दम्य नाग का उसने दमन कर दिया। उसके द्वारा भी मरकत मणि की किरणों से व्याप्त पिशाचमुखी छुरी भेंट में दी गयी। तीर सहित धनुष, तलवार सहित स्फरक (अस्त्र विशेष) और मुकुट सहित काम की अंगूठी । सूर्य के भातप का निवारण करनेवाले स्वर्णवृक्षदेव ने कुसुमघनुष और कुसुम के पांच तीर दिये जो देवासुरों को भय उत्पन्न करनेवाले थे । क्षीरवन में उसने बानर को जीता और