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________________ [सयंभूएवकर रिट्टगेमिचरिए पभणइ अपंगु अंगई पुणेवि ॥ घत्ता-पई हउं लालिउ-साध्यि-परिपालिउ णवतक जेम। दिपा विज्म यणु पाइयर भण जपाभि के ॥५॥ जलगंदण-णंदण वणुबलण। अइबाल-कमल-कोमल-चलणु ।। गर वीर महारहवर बढेवि । थिय कणयमाल मंचए पडिवि ॥ गहगियर-विचारिय-यणय-जुञ्ज । वाहयलोहाइय-णयण दुख । पिहियोसक ताथ समोयारित । सामंत सहासहि परियरियउ॥ पिएं पुच्छ्यि कुम्मग काई थिय । तर तगएं एह अवस्य किया 5 एम रिवहो अक्लियज । तेण वि करवातु करक्खियउ॥ तहि अवसरे विजुदा चवद । वत्तियहो अखत्त पसंभवः । किराय-सुरम-जोह-वलेण। जा हम्मा तो फेण पिछलेण ।। घत्ता--सिरिमेसहरि-मल्लरिहि सूयर-मिसियर-कह-मामहि । तेहि हिस्मा वालु रणे आहि अपरेहि उपाहिं ॥६॥ थिव णरबह मिक्किय णिवारिपउ । सिसु अरिंगकृषि पइसारिप ॥ धुनता हुआ कहता है. घसा-...'मैं तुम्हारे द्वारा प्यार किया गया, ताडित किया गया। नवपक्ष की तरह परिपासित हुआ 1 तुमने विद्या दी, दूध पिलाया। बताओ तुम्हें मा किस प्रकार न कहा जाए ?"|५|| दानवों का दलन करनेवाला, अत्यन्त नव कमल के समान कोमल चरणवाला, यदुनन्दन का नन्दन (प्रद्युम्न) वीर एक बड़े रथ पर चढ़कर चला गया । जिसने नखसमूह से अपने दोनों स्तन विधीर्ण कर लिए हैं तथा आंसुओं से दोनों नेत्र लाल हैं, ऐसी कंचनमाला पलंग पर पड़कर रह गई। तब राजा हजारों नौकर-चाकर तथा सामंतों के साथ वहाँ प्रविष्ट हुआ। प्रिय ने पूछा--- "तुम अनमनी क्यों हो?" [उसने कहा] "तुम्हारे बेटे ने यह हालत की है।'' जब राजा से यह कहा गया, तो उसने अपनी तलवार खड़खड़ाई । उस अवसर पर विद्युतदंष्ट्रा ने कहा कि क्षत्रिय से अक्षत्रिय आचरण नहीं हो सकता? रथ, गज, अश्व और योद्धाओं की ताकत से क्या? यदि मारना है तो किसी भी छल से ! घसा-श्री मेषगिरि, मल्लगिरि, सूकर, राक्षस, वानर और नाग, इन उपायों या किन्हीं दूसरे उपायों से उस बालक को युद्ध में मारा जाए ।।६।। मना करने पर राजा निष्क्रिय बैठ गया। शिशु को अग्निकुंड में प्रविष्ट कराया गया। अग्नि ग
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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