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________________ एगारहमो सम्गो] [१२६ कोरिकर कुमार तं मणि परिवि । पग्णसि समाप्पिय पिउ करिति ।। जं पेसण बेध्वज किपि मई। तं परिवजेश्वउ सपल पई॥ अपहि विणे परिहकारियउ । पल्लंकोवरि बसारियउ॥ कछिन ओरेसह सुक्ष्य लहु । एकसि आलिंगणु केहि महु ॥ घसा--छत्तई वसुमा वइसणउ साहय-गय-रमणाई। तुल पद, हर महएवि, बइ तो सगे किमाइ काई॥४॥ णिय-हरिजिमइ बल्लहिय । तो रायलच्छि सह मई सहिय ॥ पह होहि समाषु पुरंदरहो। विसु संचारिज्जा संवरहो ॥ सहे वयण सुणेवि कुसुमाउहण। मोल्लिज्जा पिणि-सपरहेण ॥ एउ कार अनुस-पुस-या। तुझं जमणि कालसंघल्-मणषु । सिकं छिज्जा अवि अन्ज मरमि। छुपकम्मई विग्पिषिणउ करमि॥ कंधणमालए शिभन्छिन । सुहं महु उयरे जि प अच्छियाउ ।। वणे लबउ केगा वि कहि ब हुन । कहो तणिय माप कहो तणउ सुज ।। ते तेहज ताहे षयण सुणेपि । बास को मन में धारण कर उसने कुमार को बुलाया और प्रिय करके उसे प्रशस्ति विद्या सौंप दी और कहा, "मैं जो भी आज्ञा दूं वह सब तुम्हारे द्वारा स्वीकार की जाए।" दूसरे दिन उसने कुमार को फिर बुलाया, और पलंग के ऊपर बिठाया । "ओ सुभग, शीन कच्छ को हटाभो और एक बार मुझे आलिंगन दो।" पत्ता-छत्र, धरती, कुबेर, घोड़ा, हाथी और रल ले लो। यदि तुम पति और मैं महादेवी होती हूँ तो स्वर्ग से क्या ? ।।४।। यदि तुम्हें अपनी देह-ऋद्धि प्रिय है तो मुझ सहित राजलक्ष्मी लो। इन्द्र के समान राजा बनो । कालसंवर के लिए विष का संचार कर दो।" उसके वचन सुनकर पक्मिणी के पुत्र कामदेव ने कहा-'यह तुमने अयुक्त वचन क्यों कहा? तुम मा हो, और कालसंबर पिता हैं । सिर चाहे काट दिया जाए, या आज मर जाऊँ, मैं दोनों ही दुष्कर्म नहीं करूंगा।" तब कंचनमाला ने उसे झिड़का-"तुम मेरे उदर में नहीं थे। किसी के द्वारा कही पैदा हुए, पन में तुम प्राप्त हुए । किस की मां और किसका पुत्र?" उसके वैसे वचन सुनकर कामदेव अपने अंगों को
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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