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________________ [१२३ दहमो सम्मो] जोडसजायमालगणरवि॥ थाहावित धावहो हरिवलहो। सारंग-सोनगार-स्यमहो । सिणि-सच्च-पिट-पसेण-गरहो । सिवतणय-समुविजय-जरहो।। अक्खोह थिमिय सायरपरहो। हिम-हरि-विजपाचल-गरवरहो। धारण पूरण अहिणंबणहो। वएव माम मणवण हो॥ बता–कुडे लग्गहों केण वि अवहरित बालु कमालपुण्यतु । तुम्हहं सम्वहं पेक्वंताहं गउ मा भासर-पोट्टसउ ॥१०॥ हा केण पुत्तु महु अवहरित। गिरुवमगुण-रयणालंकरित ॥ हा एक्कासि दावइ मुहकमलु। पाविउ युत्त थिउ पणजयलु ॥ उभयलिज-मलिजण निहालिया । ण सणेहें लालिउ-पालियउ । मई पावई बुक्खहं भायणए। णि वए हपएँ अलावणए । दुइमदाणवत्रल-महगहो। उच्छंगे ण विछु जणदगहो॥ उच्चाएपि लइउ गहलहरेण । णालिंगिउ अम्हह कुलहरेण ॥ ण वसार हेहि परिबियट। और बलभद्र दौड़ो । सिनि, सत्यकी, पृथु, प्रसेन, अर्जुन, शिवा के पुत्र समविजय जरदकुमार अक्षोभ्य, स्तमित, सागरकर, हिमगिरि, विजय, अचल, नरश्रेष्ठ धारण, पूरण और अभिनंदन ससुर बसुदेव मेरे पुत्र के पीछे लगो। आप सब लोगों के देखते-देखते मेरी धाशाओं की पोटली चली गयी। हा किसने मेरे अनुपम गुणरूपी रत्नों से अलंकृत पुत्र का अपहरण किया? हा एकवार उसका मुखकमल दिखाओ। हे पुत्र, स्सन युगल से दूध भरता है तुम पिओ इन उबटन किया न मला और न देखा, न स्नेह से पालन-पोषण किया । पापों और दुःखों की भाजन, भाग्यहीन आहत और लक्षणहीन मैंने दुदंम दानव-बल का मर्दन करनेवाले जनार्दन की गोद में उसे नहीं देखा । हलधर ने उछालकर उसे नहीं लिया और न हमारे कुलधर ने उसका आलिंगन किया। और न दशाहों ने उसे चूमा। किसी ने मेरे पुत्र को मार डाला है, उसके प्राण लेते हुए
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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