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________________ ११२] [सयंभूएवकए रिटुमिचरिए पग्णय-पहरण चेद-परिवें ॥ फुरियफणामणि-सोहिय सेहर । रणुपुरसु पधाइय विसहर ।। णिवडिय गयवर बरगिरि तिहरई। ण तरुवर-वरपल्लव णिय र । घसा----रहवर-वम्मीय-सहासेहिं तुरप-कण मुह-कोतिरिहि । णियसियाणारय-भुअंगम जम जिस बहुवतरिहि ॥१६॥ तहि अवसरे सरकरपरिहत्थे। पेसिउ गारुडत्यु सिरिवर्थे । एक्कु अर्णयागारहिं घाइच । बसदिसि-चक्कवाले गाड माइउ ।। पक्सपसारण किय घणबह। 'दूरदषण-पवणबिहुमणहयर । चलणुच्चालग-चानिय महिहत । कय सधिवर-दुवार-वसुंधरु ॥ सई पायाललु जति विहंगम । कहिं मासंतु वराय-भुजंगम ।। गारुसस्थु जं एम वियं भियत । तो बेहत्रे षाणु पारंभिउ ॥ पेसिज अग्गि-अत्यु बलवंतउ । गहुमाहि-एकीकरण-करत॥ हरिबलबलु समजाली इबउ । मणिरस्न का प्रकाण है और जिनके नेत्र चन्द्रमा और सूर्य के प्रकाशवासे हैं ऐसे गोविंद ने दिनकर अस्त्र छोड़ा। विनरेश ने पन्नग प्रहरण छोड़ा। जिनके शेखर फणामगियों से शोभित हैं ऐसे विषधर रण को आपूरित करते हुए दौड़े। गजवर और बड़े पहाड़ों के शिकर ऐसे गिर पड़े मानो बड़े-बड़े वृक्षों के वरपल्लव-समूह हों। घसा-रथबरों को हजारों बामियों, वीड़ों के कानों और मुखों के कोटरों, और अनेक रूपान्तरों में तीर रूपी नाग यम की तरह स्थित थे॥१६॥ उस अवसर पर तीरों और हाथों की क्षिप्रता से श्रीवत्स ने (कृष्ण ने) गारङ्ग अस्त्र प्रेषित किया। वह एक, अनेक आकारों में दौड़ा, दशों दिशाओं में चक्रमण्डल में यह नहीं समाया । पंखों के फैलाब में उसने मेघाडम्बर क्रिया । दूर के दवाब से पचन ने नभघरों को प्रक्रपित कर दिया। पैरों के चालन से उसने महीधर को हिला दिया और भरती में सैकड़ों विवर और वार बना दिये। जब पक्षी स्वयं पाताल में जाते हैं तो बेचारे साप कहाँ भागे? गरुडास्त्र जब इस प्रकार बढ़ने लगा तो चेदिराज ने स्थान परिवर्तन प्रारम्भ किया। उसने बलवान् बाम्नेयः अस्त्र छोड़ा। आकाश और धरती को एक करते हुए हरि की सेना की शक्ति भस्मीभूत हो गयी, असे {म,म-दूर देवण पवण विहुअंवरु । —दुरहमण पवण विहुणंपरु ॥
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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