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णमो सम्गो]
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'जइवि मणहरपाणहरू रुच्चद । मुद्विहे जो ग माह सो मुच्चइ ।। छटिर-प्रधस्मरण : णिवसाह कासु पासि किर भगा। धणु-कवियउ सम्वु आकंदद। गुणपणमणेण कवणुण पंवह ॥ बंकत्रगगुणेष परिछिज्जइ। को कोशीसरु जो णउ गरजह ॥ पीविजंतु मुदि को मुबह ।
कग्निति जी को पाया।। पत्ता-सरधोरणि वहरि-विसज्जिय केसब-सर पहराहिहय ।
गं पास भमेथि सुपुरसहो असइ विलक्खो होइ गय ।।१।।
तो विणियारिएण सरजालें। णिसि-पहरणु पेसिन सिसुवालें ॥ छार अंबरविवा वियतक। एउण जागहुँ कहि गउ दिगयरु॥ फुरियई तारागह-णखत्तई। पाहसरे पियई सयवत्तई॥ गिरवसेसु जग मायए छाइयज्ञ । भायवसाहणु णिहए लाइय॥ उर-उस्युह-मणिरयगृज्जोएँ। सोइण-संवाइयालोएं॥
मेल्सिउ विषयस्यु गोइवें। वह तीर सुन्दर प्राणों का हरण करनेवाला है, फिर भी अच्छा लगता है। जो मुट्ठी में नहीं समाता उसे छोड़ दिया जाता है। जिसने श्रवण धर्म छोड़ दिया है, जो गुणों का संघन करनेवाला है ऐसा मगण (वाण और याचक) किसके पास ठहरता है ? घणु (धन, धनुष) निकाल लिया गया, सभी आऋन्दन करते हैं (चिल्लाते हैं)। गुण के प्रणमन से कौन आनन्दित नहीं होता? वक्रता गुण से भी वह क्षीण हो जाता है, कोन कोटीश्वर (धनुष, करोड़पति) है, जो नहीं गरजता? पीड़ित किए जाने पर भी मुट्ठी कोन छोड़ता है? जीव के निकाले जाने पर कौन नहीं रोता। __ घसा ---शत्रु के द्वारा विसजित, श्रीकृष्ण के तीरों के प्रहार से अभिहत वीरों की परम्परा उसी प्रकार बिलखकर जाती है जिस प्रकार सत्पुरुष के निकट घूमकर असती स्त्री ।।१५।।
तब सरजाल के विनिवारण कर देने पर शिशुपाल ने निशाप्रहरण प्रेषित किया । आकास का विवर और दिगन्तराल आच्छादित हो गया। यह पता नहीं चला कि दिनकर कहां गया। तारा-ग्रह और नक्षत्र चमक उठे मानो आकाश के सरोवर में कमल खिल गए हों। अशेष विश्व माया से आच्छादित हो गया। यादव-सेना को नींद आ गयी। जिनके वक्षःस्थल में कौस्तुभ १. जइधि मणोहरु पाणहुं कच्चइ ।