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जखमी सम्मो]
तहि अवसरे लेण हक्कारित । रहदरबरेण सुसुठि ॥ राम- रुपि रहसेण गंगणे । उपरति घण गाई गगणे | विसहर- बिससमेहि- सरजाले हि ।
विषमणि किरण-करालेहि ॥ तो ताल धरण व खंडिज । विरg free frfa रिउ इंडिज ॥ उम्मएण दुमराज गिवारिज । विष्ण पृष्टि राजकवि ण मारिज ॥ उत्तमज्ज सिजियहो भनि । सम्बइ-बचें सल्लू परजिउ ॥ चेह पराहिउ ताम पधरइयउ । नारायण नाशएहि छाइयज ॥
पत्ता - सिसुवालहो लोप परिवालही करचरणण-लणाणा ।
जिहवेत सिंह तह अंति अलरक्षण मग्मणा ॥ १३ ॥
'गर-कबंध-वर संध्यं सिय-सरासणी - संजयं ॥
खरप्पहारदारुणं ।
णवपत्राल कंदारुणं ॥ समुच्छलय लोहियं ।
सुरबिल सिणि सोहियं ॥ पण स्त्रिय विखंड [भरांडयं] 1 भभिय-भूरिभेयं ।।
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कि तभी बलराम ने उसे ललकारा और रथवर को रथबर से चूर-चूर कर दिया। बलराम और कम वेग से युद्ध के प्रांगण में इस प्रकार उछलते हैं मानो नम्र के आंगन में मेष हो । विवअर और विष के समान तथा प्रलय के सूर्य की किरणों के समान भयंकर सरजालों से तालाध्वजवाले ने ध्वज खंडित कर दिया, और शत्रु को रथ और अस्त्र से विहीन करके छोड़ दिया । उम्मद ने द्र मराज का प्रतिकार किया, उसने पीठ दी ओर भाग गया। किसी प्रकार उसे मारा घर नहीं । उत्तम और भयं शिनिसुत से नष्ट हुए। इस बीच वेदिराज दौड़ा । नारायण भी नाराचों (सीरों) के साथ दौड़ पड़े।
सत्यकी के पिता से शल्य पराजित हुआ ।
घसा-लोक का परिपालन करनेवाले शिशुपाल के हाथों और पैरों के अंग में लगनेवाले तीर — जिस प्रकार देनेवाले के—उसी प्रकार युद्ध करनेवाले के लिए अलक्षित रहते हैं ॥ १३ ॥
जो मनुष्यों के कबंधों से युक्त है, जो तीखे धनुषों से युक्त है, तीव्र प्रहार से दारुण है, नवरत्न प्रवालों के अंकुरों के समान अरुण है, जिसमें रक्त उछल रहा है, जो सुरबालाओं का लोभी है; जिसमें भेव' पक्षी नृत्य कर रहे हैं, जिसका लक्ष्मी ने स्वयं वरण किया है, जो जल-थल नभ
१. खबरवरेषंतराले पसारिउ । २. अ- कयं णबर संयुयं ।