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________________ १९८] [सयभूएबकए रिट्टगेमिचरिए पत्ता-रणवणे रिजरुक्स-भयंकरे 'धणुहसाहाणिवासिएहि। सति बलई सरसप्पेहि तोणा-कोडर-वासरहिं ॥११॥ सांगुलम सुबह पाई। सच्चा उत्तमज-सिणिसल्लहं॥ पिहरुप्पिहं उम्मय दुमरायहं । वेणुवारि रोहिगितणुषायहं ॥ जेत्तहे-जेसहे हलहरु इक्का । तेतहे-सेसह कोवि ण चुक्कइ । गयवर गयधरेण दलपट्टा । रहबर रहवरेण संघट्टा ।। तुरज तुरंगमेण संघरइ। णरवर परवरेण मुसमूरइ ॥ जाणे जाणु विमाणु विमाणे। सिल्लए महधुमेण पहा ॥ जंफरे लम्गाह सेण जि पहरह। सहसु-साख-कोडि वि संहारह॥ संकरिसण रणरिज णिएप्पिणु । वेणुदार गउ पाण लएपिपणु ॥ पत्ता-पिह-रुप्पि रणंगणे जेतह-तेत्तहे रोहिणिउ वलिय। बलकवतें कातु णं धाइउ पुणु अण्णसहे णं संलिउ ॥१२॥ एप्पिणी-भायरेण पिह जिज्जइ। जीवगाह किर जाव लइज्ज ॥ घत्ता--शत्रुरूपी वृक्षों से भयंकर उस युद्धरूपी वन में धनुष रूपी शाखाओं में निवास करने वाले तूणीर (तरफम) रूपी कोटरों में रहनेवाले तीर रूपी सांपों के द्वारा सेनाएं खाली जाती हैं ।।१।। इस बीच बटे-बड़े योद्धाओं, सत्यकी, उत्तम ओजोयाले शिनि, शल्य, पृषु, रुक्मी, उम्मद, दुमराज, वेणुदारा और रोहिणी के पुत्र में युद्ध होने लगा । जहाँ-जहाँ हलघर जाते हैं, वहां-वहां कोई नहीं बचता । यह गजबर से मजवर को कुचलता है, रथवर से रथवर को टकरा देता है, घोड़े से घोड़े को चूर-चूर कर देता है, नरवर को नरवर से मसल देता है, यान से पान, और विमान से विमान को नष्ट कर देता है। चट्टान से महाद्रुम और पाषाण से—जो भी हाप में आता है उससे प्रहार करता है। हजारों-लाखों और करोड़ों का वह संहार करता है, बलराम के रणचरित को देखकर, वे वेणुदार अपने प्राण लेकर भागे। पत्ता -युद्ध के मैदान में जहाँ पृथ और किम थे उस ओर बलराम मुड़ा, जैसे सेना को निगलकर काल दौड़ा हो। फिरी वह दूसरी ओर गये ॥१२॥ रुक्मिणी के भाई द्वारा पृथु जीत लिया गया। जब तक उसके जीव का प्रण किया जाता १.ज, अ - अणुवाहाणियासिएहिं । ब—षणबा साहणिवासिएहिं।
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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