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[सयंभूएक्कए रिट्ठणेमिचरिए
करि लग्गइ गाण्यणु जयहूं। जाणमि महरिसि वयणु ण चुका। बापरमेस पुरयर दुरका ।। जइस अजाणे णवल्लए। सई लेविण श्रावेसह कल्लए । तो गिक्कलमि समज जगप्पाहें। होर होऊ सिसुवास-विवाहें।। अम्छम णियबलेण पटरंगें। पट्टणु वेविधि रुपि णिहंगे । तिह कुरा गुरु जिह मिलाइ जणद्दणु ।
बुदम-बाणव-देह-विमादणु ।। पत्ता-पपशिम लिहिवि परिसाविय पंकयगाहहोणारएण। गं हियवए विक्ष भणंगएग कुसुमसरासण-वारण ॥॥
जिह-जिह चरणजुयलु णिशायद । तिह-तिह बाल चित उपायह जिह-जिह उरुपएस् णियद । तिह-तिह मुहदसम् णिरु इच्छा ॥ नि-विह पिन मिपंच निरिगा। तिह-तिह पोससंतु ण पक्का।। जिह-जिह तिलिमाल बिहावर । तिह-तिह जा सध्यंगिउ मावा निह-जिह विद्धि धणोगरि थक्कह। तिह-तिह बम्महं जलण मुलुक्कड़ ।। जिह-जिह पडिम कंठ परिसावइ ।
कब होगा कि जब हरि मेरे हाथ लगेंगे । मैं जानती हूँ कि महामुनि का वचन असत्य नहीं होता। पदि परमेश्वर नगर में आते हैं और नये श्रेष्ट उद्यान में कल स्वयं लेने के लिए आते हैं, तो जग के स्वामी के साथ निकलूंगी। शिशुपाल का विवाह हो तो हो, चतुरंग प्रसछन्न सेना के साथ रुक्मि नगर का घेर कर रहे । हे गुण, ऐसा कौजिए कि जिससे जनार्दन से भेंट हो जाए कि जो दुर्दम दानवों की देह का विमर्दन करनेवाले हैं ।
पत्ता-नारद ने पट-प्रतिमा लिख कर श्रीकृष्ण को दिखायी, मानो कुसुम धनुष धारण करने वाले काम ने हृदय में विद्ध कर दिया हो ॥४॥
(पचित्र में) जैसे-जैसे वे दोनों चरणों को देखते हैं वैसे-वैसे वह बाला रुक्मिणी उनके लिए चिन्ता उत्पन्न करती है । जैसे-जैसे वे उस प्रदेश देखते हैं वैसे-वैसे मुख देखने की इच्छा प्रबल हो उठती है। जैसे जैसे वे विशाल नितम्ब देखते है वैसे-वैसे निश्वास लेते हुए वे नहीं पकते । जैसे-जैसे थे त्रिबलि-माला देखते हैं वैसे-वैसे उनके शरीर के सर अंग तपने लगते हैं। जैसे-जैसे उनकी दृष्टि स्तनों पर ठहरती है वैसे-वैसे कामदेव की ज्वाला प्रदीप्त हो उठती है।