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णमो संग्गो]
जाहि अंगि परिवार-सहाएं। मुक्क पमागउ पम्महराएं ।। मीलाकमलु-शुयल-बलमयहिं। मगिरयणई अंगुलेहि सयलहिं ।। तोरणथंभ उहादसहिं। राजल पिहुल-णियंत्र पएसहि ॥ तिलि-तिपरहज पाहिमले। यण-अहिसेय-कलम वपछयले ॥ रतासोप कसिलफरग्गहि । भयणंकुस महदप्पणपहिं ।। कंबुउकठि-वणि कोइलातु । गयाँ बाजुयलु पिच्छाउसु ।। भव्हहि चावलट्टि संचारिय । सिरिहि सिहंडि-सिखरि पइसारिय॥ किर परिणवी कामहो धापें ।
किउ मावास-तेण कंदप्पं ।। घसा--उबइठ्ठ आसि सिसुबालहो ताव रितिहि आएसु किर। असु सोलह पोषि सहायई होसइ सो कम्पिणिहि पिउ १३।।
सो महं फाहिउ सध्युणियवइया । हि आमुत्तर आइयउ जइबरु ।। सहि उमएस साए फुल लड़। भिर वरदत्तु वृत्तु मयरबउ ॥
सेहत अवसर होस काय । अपने परिवार की सहायता वाले राजा कामदेव ने उसके (रुक्मणी के शरीर में डेरा डाल दिया है। दोनों चरणतलों में लीलावमल, समस्त अंगुलियों में मणिरत्न, जांघों के प्रमाण में तोरणस्तंभ, नितम्ब-प्रदेशों में विज्ञान राजकुल, नाभिमंडल में त्रिवलि रूपी तीन परिवाएं (खाइयाँ), वक्षस्थल में स्तनरूपी अभिषेक-कला, हथेलियों की अंगुलियों में लाल अशोक, नखरूपी दर्पण के अग्रभागों में कामदेव का अंकुश, कण्ट में शंख, वाणी में कोमलकुल, नेत्रों में पंखों से व्याप्त बाणयुगल और भौहों में घनुष्टि संचारित कर दी गई है। मानो मयूर ने अपनी सम्पूर्ण शोभा का प्रसार पर्वत के शिखर पर किया हो। चूंकि कामदेव के पिता के द्वारा इसका परिणय किया जाएगा, इसलिए कामदेव ने उसके शरीर में आवास कर लिया है।
घत्ता-वह शिशुपाल के लिए दे दी गई थी, परन्तु मुनियों ने आदेश दिया कि जिसकी सोलह हजार गोपियां सहायक है, वह (कृष्ण) रुक्मिणी का पति होता ।।३।।
उस रुक्मिणी ने अपना सब वृतान्त मुझे बता दिया है कि जब अतिमुक्तक यतिघर आये थे, तब उस (रुखमणी)ने उन से उपदेश ग्रहण किया था। कामदेव हरिश्रेष्ठ कहे गए हैं—यह अवसर
१. प्रति में 'रातसोयारिल्लकरग्गेहि' यह पंक्ति नहीं है।