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________________ णउमो सग्मो पहिसिविए मिभगरए मेसिहिरि सवगंग। सिसुबासहो सहजीमासए पप्पि हरिप बगदर्गेण ।। ताम देव-दानव-कलियारस । ता वारसा पराहत पारउ ।। कविलजबाजूसंकिय-मत्पर । छसिय-भिसिय कर्मसु हत्या ॥ जोगवटियालंकिय-विगाह । धोयबदल कबोल-परिगह जग्गोवईय-सससर-मंडित। हिरणसोल महारण-कोहि ॥ परमदे गयमांगन-गामिन। भरिय-उपवास किलाम ।। परसम्माष-मुहिज गर तेतहे। सज्वहाम सिंहासनि तहे ।। अच्छा निययस्व जोयंती। मोहणबालु लाई होती। लावणससाए सरंती। पं जगु णपणसरेहि बिति । सुमेरुपर्वत के शिखर पर देवेन्द्र के द्वारा आदरणीय नेमि जिन का अभिषेक किए जाने पर, शिशुपाल की जीवन-आशा के साय, जनार्दन ने धक्मणी का हरण कर लिया। इसी बीच देवों और दानवों में कलह करानेवाले नारद द्वारावती पईचे। जिनका मस्तक कपिल जटाओं के जड़े से अंकित है, जिनके हाथ में छत्र, आसन और कमंडलू हैं, जिनका शरीर योगपट्टिका से अलंकृत है, जो धुनी हुई सफेद संगोटी धारण किए हुए है, सात लड़ौवाले योपवीत से मड़ित है, जो भ्रमणशील और अत्यंत कुतूहलवाले हैं, जो चरमशरीरी और आकाश विहारी हैं, जो ब्रह्मचर्य और उपवास से खिन्न हैं तथा दूसरे के सम्मान से दुःखी रहते हैं, ऐसे नारद यहाँ गये जहां सत्यभामा सिंहासन पर अपना रूप देखती हुई, संमोहन का जाल धारण करती हुई, मानो सौन्दर्य के तालाब में तिती हुई, मानो नेत्ररूपी तौरों से विश्व को देषती हुई स्थित थी।
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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