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________________ अट्ठमो सग्गो कि फिज्जाद खुद अम्हारिहि ॥ तिहमगे ण मविज्ञह महवि आसि। ण उ पिढइ सुह गुण-रयण-रासि ।। भाषण भन्नगासण जगे परोस । थुइ तेण करतहं कवणुदोसु ॥ यत्ता-एम भणेवि दिश्वोकसणाहें परमभाव-सम्भाव सगाहें। अविवि पुज्जिवि तिवणसारच जगणिहि अग्गए पषिउ भजारर ॥१२॥ गउ सृरवइ गरिदे कवि बाए। परिषड्वङ्ग सिधण-सामिसालु H चांगह-संसार समसेज। अजरामर-पुरबहसार-हेउ॥ तइलोषक-भुवण-भूसण-पईउ । अभयामसिनिय-सयालीच ॥ लावण्ण वारिपूरिय पियंतु । सोहना-महोदहि भवकयंतु ॥ को घण्ण वि सक्कद उ तासु । सरकुवि संकिउ थुइ करिषि जासु।। बससयमहोवि धरणिदराउ । योत्तुम्गीरिणि असमत्थु जाउ । गुणगणेविण साह सरसइ वि । असमत्थ णिहानणे सुरवह वि॥ हरि-हलहर-कुरख-रहक्कणेमि । किर जेय लेग किउ पाम मि ॥ गों के द्वारा मला आपकी क्या स्तुति की जाती है ? यद्यपि आपको गुण राशि त्रिभुवन के द्वारा मापी गयी है, फिर भी वह समाप्त नही हुई। दुनिया में पही घोषित किया जाता है कि भाषना से ही भव का नाश होता है इसलिए स्तुति करने में कौन-सा दोष है ? पत्ता-परमभाष से सहित, दिब्यालय के स्वामी देवेन्द्र ने यह कहते हुए त्रिभुवन के सारभूत आदरणीय नेमिजिन की पूजा-अर्चाकर उन्हें माता के सम्मुख रख दिया ॥१२।। दालक को भवन में रखकर देवेन्द्र चला गया। त्रिभूवन के स्वामी श्रेष्ठ वहाँ बढ़ने लगते हैं। जो घार गतिवाले संसाररूपी समुद्र के सेतु है, जो अजर-अमर नगर के स्वामी और सारभूत हैं, जो त्रिलोकरूपी विश्व के शोभाप्रदीप हैं, जिन्होंने अपने अभय वचनामृत से समस्त जीवों को जिलाया है, जिन्होंने सौंदर्यरूपी जल से दिगंत को आपूरित किया है, जो सौभाग्य के समुद्र और भव के लिए कृतांत हैं, उनके रूप का वर्णन कौन कर सकता है ? एक हजार मुखबाला परणेन्द्र भी आपकी स्तुति के उच्चारण में असमर्थ है। सरस्वती भी आपके गुणों की गणना नहीं कर सकती है। आपको देखने में घेवेन्द्र भी असमर्थ है। चूंकि भाप नारायण और बलभद्र के वंश के रत्नचक्र के नेमि हैं, इसलिए आपका नाम 'नेमि' रखा गया।
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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