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________________ अट्टमो सग्गो बत्तीस सोंच बत्तीस वयणु ॥ बउष्टिकण्ण चउटुिणपण । एक्केकए मुहे अवंत ॥ कलाहोयवलय-उसीह । ति। पत्ता--ति वंति सरो सरि-सरि पसणि स वि कमलिणिवत्तिणि। कमले कमले बसीस जे पसई पत्ते-पत्ते णट्ठाई जि तेत्तई ॥७॥ सहि ताहे मायाधि गइंदे। वलकण्णसास-तुलियालिविदे॥ मय-णइ-'पखालिय-गंठबासे। सिक्कारमाह-आऊरियासे । आरूढपुरंदर-माषहिउ। सत्ताखोसण्छर-कोडि-सहित ॥ संचरल चउम्बिह सुरणिकाय ! ण सुण सग करेवि आय ॥ गरणालंकार-विहूसियंग। पाणा मडफिय-उत्तमंग ॥ गाणाधय गाणाजाणरिय। णाणामवत्त चामरस मित्र । णाणा बंगावरियगत । वारबह खबद्धझेण पत्त ॥ जिण लइउ दुकूल-पडतरेण । चूडामणि णाई पुरंदरेण ॥ ऐरावत हाथी स्थित हो गया। उसकी बत्तीस सूड़ों पर बत्तीस मुख थे, चौसठ कान और चौसठ नेत्र थे। एक-एक मुंह में आठ-आठ दांत थे । स्वर्णवलय उसकी शोभा बढ़ाते थे । बसा-एक-एक दांत पर सरोबर थे। सरोवर में कमलपत्र थे जो कमलनियों से युक्त थे। प्रत्येक कमल में यप्तीस दल और प्रत्येक दल में उतनी ही नर्तकियों थीं।।७।। उस समय वहाँ पर चंचल कुण्डल के समान भ्रम रसमूह मडरा रहा था। जिसके गंडस्थल के पार्श्वभाग मदधारा से प्रभालित हैं, जिसने सीत्कार के जलवणों से दिशाओं को आपूरित कर दिया है, ऐसे उस मायावी गजराज पर भावों से अभिभूत देवेन्द्र, सत्ताईस फरोड़ अप्सराओं के साथ आरूढ़ हो गया । धारों प्रकार के देवसमूह चले, मानो वे स्वर्ग को शुन्य बनाकर आये हों। जिनके अंग नाना प्रकार के अलंकारों से विभूषित हैं, जिन्होंने अपने सिरों पर नाना प्रकार के मुकूट धारण कर रखे है, जो नाना वजी और नाना यानों से समृद्ध है, जिन्होंने नाना दिव्य वस्त्रों से अपने शरीर आच्छादित कर रखे हैं, ऐसे देव आधे से आधे क्षण में द्वारावती जा पहुँचे । देवेन्द्र ने शिशु जिनेन्द्र को दुकूलवस्त्र के भीतर ले लिया, जैसे चुडामणि से लिया हो। -.१.प-पक्खासिय । २. अ—आओरियासे ।
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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