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________________ [सयंभूएवकए रिटुणेभिचरिए मेह सपरिट्रिउ पंचम॥ पत्ता--हरिवंस पवित्तु तहो पासिउ गिरि सहसगुण। जहि होसइ मि जहि सिम्सइ सो जि पुणु ।।१३॥ जो गमतमत्त-मायंग-लुंग-बंताग णिहस्सणुच्छलिय, मणिसिलापरण-पेल्लणुच्यीमहाभरात करकसणाहि-मुक्क फुक्कार-कोव-जालगि मालमालाउलीयकथामूस-विउस-सिहरो। जो करि-करह-त विणिग्गंत-मयसरिसोत्ततिम्मत जसंघाय खोल्ल-चिखिल्ल-तल्ल-लोसंतफोलउसवक्कदाढा हय ससितमणिमयूहपमनरंत णा-णियह भरिपकुहरो॥ जो गंपवतिय कंकेल्सि-मल्लिय-तिल्लप-वजल-वषय पियंगु-पुग्णाय-णाय-परिगलियकसमपरिमलपिलंत लोलालिक्लय-संकार-मणहरु सल्लिय गंधव्यमिनुण-पारद्धगेयकम्मो। जो 'अक्यन्छियङ्ग्रहामुह-महागृहगाहगाहर गयगत्तवियुत्त-णालणित-णीसस-ससमुच्छलियधवल मुसाहलावलि घुण्णवण्ण-दसण-पहिठ्ठ-अच्छत-अच्छरापलिहिय चित्तपम्मो॥छ।। जहि य-चंदण-तमाल-साल-बंदण। असोय-गाय-संपया-पियंगुपरिजापया। जहि परति संबरा, वराह-वग्घ-वाणरा। गया समुहासोंडया, सबीवि-सीह गंडया। जोहराया, मल-कायषा। नगरियां हैं। वह स्वयं श्रेष्ठता से बीच में स्थित है, मानो पांचवा मेस स्थित हो। पत्ता-हरिवंश पवित्र है, उसकी तुलना में पहाड़ हजार गुना पवित्र है जहाँ नेमिनाथ उत्पन्न होंगे और वहीं वह सिद्धि प्राप्त करेंगे ।।१३।।। गरजते हुए मतवाले हाथियों के ऊँचे दन्तानों के संघर्षण से उछली हुई मणिशिलानों के पतन की प्रेरणा से धरती के महाभार से आक्रान्त, क्रूर वाले नागों के द्वारा छोड़ी गई फफकारों के क्रोध की ज्वालाग्नि की ज्वालामालाओं से जिसके मूल और शिखर विस्तीर्ण हैं। हाथियों की सूड़ों के तट से निकलती हुई मदजल रूपी नदी के स्रोतों से गीले हुए, कुंजों के समहों के कीचड़ भरे हुए तलभागों में खेलते हुए सूकर समूह के वक्रदन्तों से आहत चन्द्रकान्त मणियों की किरणों से भरती हुई नदियों के समूह से जिसके कुहर भरे हुए हैं। पवन से आंदोलित अशोक, मल्लिका (युही), तिलक, बकुल, चंपक, प्रियंगु, पुन्नाग(पाटल), नागकेशर वृक्षों से गिरे हुए, पुष्पपरागों के मिले हुए, चंचल भ्रमर समूहों की झंकारों से मनोहर प्रदेशों में चलते हुए गंधवों के जोड़ों ने जिसमें गीत्त कर्म प्रारम्भ किया है। दिखाई देनेवाली सुधामुख वाली महान् गुहाओं के ग्राहों (मगरों) के द्वारा गहीत, गजशारीरों से अलग हुई तथा भीलों द्वारा प्रेरित विश्वासों के कारण उछलते हए धवल मूवातादलियों के चूर्ण रंगों को देखकर प्रसन्न हुई, विद्यमान अप्सराओं के द्वारा जहां चित्रकर्म सिखा जा रहा है। जहाँ आम्र, चंदन, तमाल, ताल, लाल चन्दन, अशोक, नागकेशर, चम्पा, प्रियंग और पारिजात वृक्ष हैं, जहां सांभर चरते हैं, जहाँ बराह, बाघ और वानर हैं, सूर उठाए हुए हाथी, १. म—मियंक व सरिस-समूह-मणि-पञ्झरंत । य–दादा मियंक ब ससि-समूह-मणि पयरत । २. अ-अवस्थिम ।ब-अलच्छिय ।
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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