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________________ भत्तमो नग्गी]. रोयसि ताउ तहि वैथियउ। देवह जसोय हा कहिं गयउ॥ हा हरि-हलहर-दसाव्हहो। हा गंव-णंच हा गोवुहहो॥ हा आपबलोयहो जाउ स्वउ। हा वय भणोरह होतु सउ। तो कालजमेण पउछियर। ताज वि कहति उम्मुन्छियउ॥ जरसंधु कोवि सियसई बलिउ। उपक्ष उम्परि उच्चलियजा पत्ता तहो तर्णण भएण पालामालरभोसण हो। मुझ जाययसब्ध उप्परि घडिज एआलणनो ॥१२॥ तं णिणिवि वहरिसेष्णु वलिउ । गज जायवबलु अपविक्सलिउ। तो गिरि उज्जैल णिहालियज। कल-कोइल कलरव-मालियउ॥ अलिउल-शंकार-मणोहर। णे वसुह-वारंगणहो सेहरउ॥ जोश्वषिलासु णं रेक्यहो। सूडामणि णं वणवेवयहो॥ णे पुण्णपुंज णारायणहो। णं सो जि मोक्नु सादयजणहो । पाहि पाउ महिहर चउ सरिउ । घउ गरिउ सुट्ट मनोहरिस ।। अप्पुणु मारिउ अगुत्तम। देवकी ! यशोदा तुम कहाँ गयौं ! हाय हरि हलधर और दशाहों का, हाय नन्द और ग्वालों का अन्त हो गया। हाय ! यादव लोगों का क्षय हो गया । हे देव! तुम्हारे मनोरथ पूरे हों।" तब कालयम ने पूछा, और वे उससे यह बहती हुई भूछित हो गयीं कि देवताओं से भी बलवान जरासंघ नाम का व्यक्ति आक्रमण द्वारा ऊपर पढ़ आया है। घत्ता-उसके भय के कारण सभी यादव उदालमालाओं से भयंकर आग पर चढ़कर मर गये। ।।१२।। यह सुनकर शत्रुसेना लौट गयी, और यादयों की सेना बिना किसी प्रतिरोध के चली गयी। उस समय उसने गिरनार पर्वत देखा जो सुन्दर वायलों के कलरव से घिरा हुआ था, अमरकुल की झवार से ऐसा सुन्दर था मानो धरती रूपी वारांगना का शेखर हो, मानो नर्मदा का यौवन विलास हो, मानो वनदेवी का चूड़ामणि हो, मानो नारायण का पुण्यपुंज हो, मानो धायकजनों का यही मोक्ष हो । उसके पास में चार पर्वत और चार नदियाँ हैं और अत्यन्त सुन्दर पार
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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