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[सयंभू एकए रिटुभिचरिए:
ततं विरसुरसंतु जइ ण गेमि जमसा सगहरे । तो कल्लए बेमि उपरि प हुआसणहो ॥१०॥ प प करिष्पिणु णीसरज । रंगाणीयालंकारय ॥ गहरा सकलिकालोदमहं उद् लक्ष्क्ष बी॥ हम जुत्तहं धूयमाण धयहं । सियई लक्ख संवणहं || पहरणभरियहं रिउमद्दह्णं । दह वीयि सहस - णराहियहं ॥ मंडलपरिवालहं परिचनहं । अब ममाणु के बुजिय ॥ अग्गिज पेसिउ अप्पाण- समु । लहार णंदणु कालयम् ॥ मग लग्गु अरिपुंगमहं । णं खग पवरभुअंगमहं ॥ ताहि तेहि काले पडिउदारभाव गयज ।
सेण्णहं वि वाले मिलियउ हरिकुल द्वेषयउ ॥ ११॥
बहुपणकूडागार किञ्च । संचारिम महिहर णाई थिच ॥
दिसु चोय पज्जालि । धूमाउल-जालागा लियउ ।। आणण्णरूत्र संचारिणि । महिला वुत्तणधारिणि ॥
पत्ता - विरस चिल्लाते हुए उसे यदि मैंने यम के शासन में नहीं पहुंचाया, तो कल ही, मैं आग पर कूद जाऊँगा । ॥ १० ॥
राजा जराक्षेत्र प्रतिज्ञा करके निकला। वह् चतुरंग सेना से अलंकृत था । उसके पास नरे करोड़ प्रवर अश्व थे जो ग्रह, राक्षस और कलि के समान थे। बारह लाख बीस हाथी थे। उतने ही घोड़ों से जुते हुए, प्रकंपित ध्वजवाले प्रहरणों से भरे हुए रथ थे। शत्रुओं का मर्दन करने वाले, मण्डलों का परिपालन करनेवाले तीन हजार दो सौ दस राजा थे। दूसरे प्रमाण को कौन समझ सका है ? जरासंध ने अपने समान छोटे पुत्र कालवम को आगे भेजा जो शत्रुश्रेष्ठ के मार्ग के पीछे लग गया, मानी गरुड़ प्रवर नागों के पीछे लग गया हो ।
घत्ता - यहाँ उस समय सैन्य के चलने पर प्रत्युपकार की भावना वाली हरिवंश की देवियां मिलीं ॥। ११॥
उन देवियों ने प्रचूर इंधन के कूटागार ( ढेर) बनाये, जैसे वे चलते-फिरते पहाड़ हो । चिताएं चारों दिशाओं में प्रज्वलित हो उठीं जो धुएँ की ज्वालाओं से युक्त थीं। दूसरे दूसरे रूप बनाने वाली उन महिलाओं ने वृद्ध महिलाओं के रूप धारण किये। वे वहाँ रोने लगी- "हे