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________________ मी सग्गो] बिहिए कुविए एक्कु ण अपकमद ॥ तहि काले अणं अंतरि । अरिर सिर खुरुप कम्परिङ ॥ धत्ता - अवरेहिं मिसरेहि फमकरसिरहं पट्टियई । फलहले गाई कोमलकमल बुद्धिय ॥६॥ अरसंबंध 'परिण रणे । संक जाय जायव मणे ॥ लाहो मंजि अयण्णव ण जाम चक्कवइ ॥ जर कइषिपत्तु, तो कोविगवि । उ हरि-लघर वि वि ।। विडुण गोठण गोविषणु । पइसर गंपि परिविडल वणु ॥ सम्बद्ध हियव वय थि । aaree पुरणग्गम किज ॥ अट्ठारहकुल कोडिहि सहिया । सिरि कुलहर हलत्र गिथ्विहिया ॥ एसहे वि सहोय र सोह्ड 1 जरसंघ गरा हिउ मुच्छ गजं ॥ कवि लघु चेपणु खवि । भाइ महारज णिवदलिय ॥ [-१ आक्रमण नहीं करता। उस समय श्रीकृष्ण ने व्यवधान डाला। उन्होंने खुरपे से शत्रु का उर और सिर काट लिया । पत्ता - और भी दूसरे वीरों से पैर, हाथ और सिर नष्ट हो गये, जैसे कलहंस के द्वारा कोमल कमल काट डाले गये हों ॥६॥ जब जरासंध का भाई युद्ध में मारा गया, तो यादवों के मन में आशंका उत्पन्न हो गयी । मन्त्रिसमूह कहता है - "जल्दी भाग चलो, जब तक चक्रवर्ती नहीं सुनता। कभी वह यहाँ आ गया सी कोई नहीं है । न दशाई, न हरि-हलधर ही, न नन्द, न गोठ और न गोपीजन अत्यन्त विपुल (बड़े) वन में प्रवेश करो।" यह बात सबके दिल में जम गयी। शीघ्र ही उन्होंने नगर से कूच कर दिया तथा श्रीकृष्ण और बलभद्र अठारह कुल करोड़ लोगों के साथ वन में छिप गये। यहाँ भी भाई के शोक से आहत राजा जरासंघ मूर्च्छित हो गया। किसी प्रकार कठिनाई से उसने चेतना प्राप्त की और कहा - " जिसने मेरे भाई को मारा है १. अपरिसु । २. 'आसक जाय जायवहं मणे । लहु णासहो मंतिलोड चवइ । आयष्णइण जाम चक्कवह ।' ये पंक्तियों अ' प्रति में नहीं हैं ।
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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