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________________ सामो सम्मा [७६ सो ससर सससम पसर कछ। जरसंघ बंधु दुबर-रिस-धर ॥ परिभमाइ महाहवे एक्करहु । घिउ रासिहे गाह करगह। उमछरा फुरद पहरण आह । सुग्घोट-चट्ट फुट्ट ति सहिं ॥ राह कडपति मोति षय । छसई पति विहांति हय । गियबल संभासेवि एक्कु जणु। सामरिमु ससंघण ससा सषणु ॥ तहो जरकुमार ताहि अंति भिडित । गं गयहो गइद् समाहित ते वेगि बलुबर-बुद्धरिस । पारख जुल्म बामरिस ।। पत्ता—विधतेहि तेहिं पाणणिरंतच गयणु किन। सभुवंगम सस्य उप्परि णं पायाल थि॥॥ तो 'रणहि दिण्ण-महाहवेण। जरसंघहो बंधुर बंपरेण ॥ हयगयसरराष्ट्र सयक्षर णिउ । भय पारित सारहि विहल किंज ॥ कह फर्वि कुमार ण घाइपउ । हि अवसरि सच्चइ धाइयउ॥ और तीर पर फैला हुआ है तथा जो दुर्धर्ष ईया धारण करनेवाला है, जरासंघ का वह भाई अकेला ही रथ पर बैठकर उस महायुद्ध में परिभ्रमण करता है। वह ऐसा लगता है मानो कोई कर ग्रह स्थित हो । जहाँ वह हथियारों को उछालता और धमकाता है, वहाँ हात्रियों की घटाएँ नष्ट हो जाती हैं, रथ कड़कड़ा कार टूट जाते हैं और ध्वज मुड़ जाते हैं, छत्र गिर पड़ते हैं, अश्व विघटित हो जाते हैं। तब अपनी सेमा से संभाषण कर, अमर्ष से भरा हुधा जरत्कुमार रथ, तौर और धनुष के साथ अकेला वहाँ अन्ततः भिड़ जाता है, जैसे महागज पर महागज भा पड़ा हो। वे दोनों ही बल से उक्त और दुर्धर्ष हैं । अमर्ष को बांधनेवाले उसने युद्ध प्रारम्भ किया । पत्ता-वेधते हुए उसने आकाश को लगातार आच्छादित कर दिया, जिससे सभी मुजंगम पाताल से निकल ऊपर आ गये मानो पाताल ऊपर स्थित हो गया हो ||७|| तम बुद्ध प्रारम्भ होने पर महायुद्ध करनेवाले जरासंध के बंधु-बांधव ने अश्व, गज और श्रेष्ठ रथ के सौ टुकले कर दिये । ध्वज फाड़ दिया, और सारथि को विफल कर दिया। किसी प्रकार केवल कुमार को आहत नहीं किया। उस अवसर पर सात्यिकी दौड़ा।अत्यन्त असहनीय वे दोनों आपस में भिड़ गये । प्रवर रथों को उन्होंने प्रेरित किया । वे दौड़ पड़े। शिनिसुस का धनुष १. रणहि ।
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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