SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सत्तमो सग्यो] [७७ णाणाविह वाहिय-वाहमाई॥ ग्रवर्गवाहन य धवडई। अफालिय-सूर-रष-उपकलाई ॥ मारिया जलयर-संचाई। विहाक सभ-म ॥ पिक्सोह-भरिय-संका भनाई। उम्मग्गलग्ग हयगयरहाई ॥ पत्ता-जरसंघहो सेग्म सरहस कहि मि ण माश्या । लंधेवि पायाह दिसियविसिहि धाइयउ॥॥ एक्कोयक भायक णियमसमु। मुखर रणभर-धुर-धरणखम् ।। आसपण-मरण-भय-याक्जयाउ । सेणाषइ करिवि बिसज्जियउ॥ प्रवराइज धाइज अतुल बलु। गं मेह गयणे मेल्लंतु जलु ॥ एसहे वि जणद्दणु सणिहित । बस-दसाह जर कुमार सहित ॥ सव्वउ सौराह-परियरिया । अपरेहि भहि अलंकरियउ॥ उत्थरियई पसरिय-कालयला। नारायण जरसंघहो वलई॥ पहरण-जजरिय-णहंगणई। कोवग्गि-मुक्किय-सुरगणा उडाइय धूलोधुसरहे। रुहिरोहाणिय-वसुधरई ।। . प्रखरपवन से पताकाएँ उड़ रही थीं, जो बनाए गए नगाड़ों के शब्द से उत्कट थीं । शंखों का समूह फंक दिया गया, उद्भट भटों के समूह विकल हो उठे, गंभीर योद्धा क्षोभ से भर उठे। अश्व, गज और रथ उन्मार्ग से जा लगे। घसा-हर्ष से भरी हुई जरासंध की सेना कहीं भी नहीं समा सकी। परकोटों को लापकर बह दिशाओं-विदिशाओं में फैल गयी ||४|| अपने ही सहोदर (भाई) को जरासंघ ने सेनापति बनाकर भेजा, जो दुर्धर युद्ध-भार को उठाने में सक्षम, और आसन्नमृत्यु के भय से दूर था। अतुलबल अपराजित इस तरह दोग, मानो आकाश में जल छोड़ता हुआ मेष हो। यहाँ भी श्रीकृष्ण दस घशाह और जरत्कुमार के साय नैयार हुए, बलभद्र के साथ, तथा दूसरे योद्धाओं से अलंकृत्त । जिनमें फलकल बढ़ रहा है, श्रीकृष्ण और जरासंघ की ऐसी सेनाएं उछल पड़ीं। हथियारों से आकाश के आँगन को जबर कर देनेवाली, क्रोध की ज्वाला से देवांगनाओं को झुलसाती हुई, और धूल से धूसरित वे रक्त की धाराओं से धरती को रंगती हुई दौड़ चलीं।
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy