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[सयंभूएवकए रिटणेमिचरिए
बहू मच्छराह मिलियामराहं ॥ सियचामराह षयधयवाहं। बप्पुम्भलाई वाहिरहाई ॥ गुरुविरगहाहं सुभ्यंकराह । पाहरणकराहं तुच्छराह॥ জামি জু ফাখবি কিন্তু। करयवि गरेहि पहिरन मरेहि । कवि हएहि खग्गा हरहि। णि सामि सासु गाणंतराल ॥ कवि सिवाए भड़ लहउ पाए। सिंह पवैवि थाई पिउ पियए णाई॥
भडभडेहि परोप्पर ताम हय सत्तारह पासर जाम गय ।। थता-रणु करेम्पिण रद्द परबलु जिपिवि ण सपिकया । गज बलेवि कुमार हत्यि घ सोहहो संकियउ ॥३॥
जो कालजवण घद मायउ। विहाणउ कविण घाडयउ॥ बल-परबलु-पहरणु जाज्जरित। णं फणिउलु गरुख-घायभरिउ ॥ गं गिरिसमूह-कुलिप्साहपउ। णं हरिणजूह हरिमय गयउ॥ उप्पण्णु को तं परियवहो। भारवरिसर-शराहिबहो॥ पश्यिा सव्वई साहलाई।
श्वेत पामरोंवाली हैं, जिनके ध्वजपट उड़ रहे हैं, जो दर्प से उद्भट हैं, जिन्होंने रथों का संचालन किया है, जो विशाल आकारवाले हैं, जो अत्यन्त गयंकर हैं, जिनके हाथों में अस्त्र हैं, जिन्होंने अप्सराओं को सन्तुष्ट किया है, ऐसी दोनों सेनाओं में कही युद्ध प्रारम्भ हो गया, और कहीं पय वख हो गया । कहीं पर योद्धाओं ने तीरों से प्रहार किया, कहीं पर खड़गों से आहत किया । अश्वों के द्वारा स्वामीश्रेष्ठ दूसरे के स्थान पर ले जाया गया । कही पर सियारन ने योवा को पैर से ले लिया, सिर झकाकर वह ऐसी हो गयी, जैसे प्रिया प्रिम के सामने स्थित हो । योद्धाओं से योद्धा आपस में तब तक लड़ते रहे, जब तक सत्तरह दिन बीस गये।
पत्ता-भयंकर युद्ध करके भी कुमार शत्रुसेना को नहीं जीत सका। जिस प्रकार हाथी सिंह से पांकित होकर पल देता है, उसी प्रकार कुमार वापस चला गया ॥३॥
एकदम म्लान, और किसी प्रकार मारा भर नहीं गया वह कालयवन शत्रसंन्य से जर्जर, जैसे गरुड़ के आघातों से भरा हुभा नागकुल हो, जैसे बन से पाहत पवंत हो, जैसे सिंह से भयभीत मृगों का झुण्ड हो, जब घर आया तो भारतवर्ष का अर्थ-चक्रवर्ती राजा जरासंघ आग. बबूला हो उठा। उसने समस्त सेनाएं भेज दी, जिनमें नाना प्रकार के घाहन चलाए जा रहे थे