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________________ सत्तमो सग्मो] पत्ता--परितापहि ताय महराहियेण परंतएन । हउं एह अवस्य पाविय पई जोवतएण ॥१॥ मनहाधिवेम तहे वाइग्रज। कहि केण स विणिवाइड ॥ काहि केण कयंतु णिशालिन। के सुरबह सम्पहो टालियज ॥ उपायउ अमहो फेण मरणु । किउ केण महोरय-विसजरणु॥ के पक्ष समुक्खय गवइहे। अवहरिउ केण हरि भगवइहे ।। मिय-वइयह साए तातु काहिज । पर-जणण-दिणास एक्कु रहिउ । तो विषण समरभर कंधरेण । पालिय तिय-खंड-मंडियधरेण ॥ पहिलारउ पुत्तु 'कालजवणु। पट्टविय ससाहण मणगमणु । अभिडिउ गपि सो जापवहं। गि निगान पाम्यहं ।। पत्ता-पहिलारए जुझ रणरउ कहिं मिल माइयउ। णं बलई गिलेवि सुरहं पडीयच घाइपउ ॥२१॥ ___ दोण्ह वि बलाहं किय कलयलाह। पत्ता-वह पिता से बोली- “हे तात ! रक्षा कीजिए। मथुरा के राजा के मरने से तुम्हारे जीते जी मेरी यह अवस्था हुई ।।१।। मगधराज ने उससे कहा- 'बताओ, किसने कंस को मारा? कहो, किसने सम को देखा ? किसने इन्द्र को स्वर्ग से हटा दिया ? किसने यम की मृत्यु की? महोरग के विष का नाश किसने किया? गरुड़ के पंखों को किराने उखाड़ा? भगवती के सिंह का अपहरण किसने किया ?' तब उस जीवंजसा ने अपना वृतान्त उससे कहा कि एक केवल पिता का विनाश बाकी रहा है। तब जिसने युद्ध के भार में अपना कंधा दिया है तथा तीम खण्ड धरती का परिपालम किया है. ऐसे जरासंघ ने मन की भांति गमन करनेवाले कालयवन नामक पहले पुत्र को सेना के साथ भेजा। वह जाकर यादवों से भिड़ गया, उसी प्रकार जिस प्रकार अभिनव दावानल वृक्षों से। - पत्ता-पहले युद्ध में युद्ध की धूल कहीं नहीं समा सफी, मानो सेनाओं को निगलकर वह उल्टी देवों के ऊपर दौली ।।२।। जो कलकल कर रही है, अत्यधिक भरसर से भरी हुई है, जो देवों से मिली हुई है, जो १. अ, ब और ज प्रतियों में 'कालदसणु' पाठ है, आचार्य जिनसेन के हरिवंशपुराण में 'कालययन' पाठ है।
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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